भारत की मातृभाषा हिन्दी है. लेकिन कुछ विवादों की वजह से इन दिनों हिन्दी भाषा सुर्खियो में छाया हुआ है. हालांकि हमारे देश की दुर्भाग्य है कि दक्षिण भारत के राज्यों के विरोध के कारण अब तक राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं प्राप्त कर पायी है. आये दिन वह के कई राज्यों में हिंदी के विरोध में सुर उठते रहते है. एक बार फिर ऐसा ही माहौल बनाने की कोशिश की जा रही थी. तो चलिए बताते है आखिर पूरा मामला क्या है.
यह है पूरा मामला
बीते दिनों यह मामला सुर्खियो में छाया हुआ था. दरअसल पिछले महीने ग्रामीण इलाकों में पोस्टमैन और असिस्टेंट की भर्तियों के लिए डाक विभाग की परीक्षाएं में क्वेश्चन पेपर सिर्फ अंग्रेजी और हिंदी में पब्लिश करवाई गयी थी. जिसको लेकर वहां के सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक समेत राज्यस्तरीय राजनीतिक दल इसका पुरजोर विरोध किया. राजनितिक दलों ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि तमिलनाडु पर हिंदी थोपने का यह नया तरीका अपनाया गया है. वहीं इसका जबाब देते हुए निर्मला सीतारमण ने कहा कि सरकार से सवाल पूछते समय देखना चाहिए कि यह जानबूझकर किया गया है है नहीं? हमें किसी भी निर्कर्ष पर पहुचने के पहले सबकुछ देखना चाहिए. केंद्र सरकार हिंदी नहीं थोपती है .
निर्मला सीतारमण का दो टुक
सीतारमण ने अपने एक बयान में कहा कि एक भारत श्रेष्ठ भारत’ योजना के तहत देश के उत्तरी राज्यों में तमिल भाषा को लोकप्रिय बनाने की कोशिश की जा रही है. मोदी सरकार सबका साथ सबका विकाश करने के प्रयाश में काम करती है.लेकिन इसके बाबजूद कुछ विरोधी पार्टी सकरार को बदनाम करने पर तुली हुई है. इसके साथ ही जब यह मुद्दा संसाद में उठा तो केंद्र मंत्री रविशंकर प्रसाद ने अपने बायं में आश्वासन देते हुए कहा कि कि 10 मई, 2019 की अधिसूचना के मुताबिक अब परीक्षा सभी स्थानीय भाषाओं में भी कराई जाएगी . केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को कहा कि केंद्र सरकार तमिलनाडु पर हिंदी थोपने का कोई प्रयास नहीं कर रही है बल्कि सरकार तमिल भाषा को भी बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है.
भारत में मूल भाषा को लेकर भले ही कुछ राज्यों में इसकी कदर न होती है लेकिन, हिन्दी भाषा पहले से भी और वर्तमान में भी वैश्विक सम्मान को प्रमाणित करती हुई दिखाई दे रही है. आज हिंदी देश ही नही बल्कि विदेशो में भी सबसे लोकप्रिय भाषा बनती जा रही है.