हमारे भारत देश में न जाने कितनी भाषा बोली जाती हैं। पंजाबी, गुजराती, मराठी, कन्नड़, मलयाली, बंगाली, आदि भाषाओं वाले देश की राष्ट्रभाषा है – Hindi। हर साल देश में 14 सितम्बर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज़ाद भारत के राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गाँधी ने भी Hindi भाषा को जनमानस की भाषा कहा था। साल 1918 में राष्ट्रपिता ने एक हिंदी साहित्य सम्मलेन में हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की बात रखी थी। फिर साल 1949 की 14 सितम्बर को यह निर्णय लिए गया कि हिंदी देश की राष्ट्रभाषा कहलाई जायेगी। साल 1953 को देश ने 14 सितंबर को ‘हिंदी दिवस’ के रूप में मनाने का फैसला किया।
Hindi भारत की राजभाषा जरूर बनी लेकिन राष्ट्रीय भाषा बनते बनते रह गई। साल 1946 – 1949 तक जब भारतीय संविधान का मसौदा तैयार किया जा रहा था, उस दौरान भारत और भारत से जुड़े तमाम मुद्दों को लेकर संविधान सभा में लंबी लंबी बहस और चर्चा होती थी। इसका मकसद था कि जब संविधान को अमली जामा पहनाया जाए तो किसी भी वर्ग को यह न लगे कि उससे संबंधित मुद्दे की अनदेखी हुई है। वैसे तो लगभग सभी विषय बहस-मुबाहिस से होकर गुजरते थे लेकिन सबसे विवादित विषय रहा भाषा – संविधान को किस भाषा में लिखा जाए, सदन में कौन सी भाषा को अपनाया जाए, किस भाषा को ‘राष्ट्रीय भाषा’ का दर्जा दिया जाए, इसे लेकर किसी एक राय पर पहुंचना लगभग नामुमकिन सा रहा।
इस मुद्दे को हल करने में महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू समेत कई सदस्य हिन्दुस्तानी (हिंदी और उर्दू के जोड़ वाली) भाषा के पक्ष में दिखे थे। साल 1937 नेहरू ने अपनी राय रखी कि देश में आधिकारिक रूप से संपर्क स्थापित करने के लिए एक भाषा का होना जरूरी है और हिन्दुस्तानी से अच्छा क्या हो सकता है। वहीं गांधी ने भी कहा था कि अंग्रेजी से बेहतर होगा कि हिन्दुस्तानी को ही भारत की राष्टीय भाषा बनाया जाए क्योंकि यह हिंदु और मुसलमान, उत्तर और दक्षिण को जोड़ती है। लेकिन विभाजन के समय लोगों के अंदर एक-दूसरे के मजहब को लेकर बढ़ रहे गुस्से को देखते हुए ‘हिन्दुस्तानी’ भाषा पीछे हटती चली गयी। और इसके चलते कई लोग शुद्ध हिंदी के पक्ष में नज़र आने लगे। उधर, दक्षिणी भारतीय लोग इन दोनों भाषाओँ का साथ नहीं दे रहे थे। उनके लिए यह दोनों भाषाओँ को समझना थोड़ा कठिन सा हो रहा था।