बच्चों को देश का आने वाला भविष्य तो कह दिया लेकिन, उनकी ऐसी हालत। बाप रे…

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बच्चों

हमारे यहाँ बच्चों को भगवान का रूप कहा गया है। क्यों? क्योंकि वह अच्छे और सच्चे होते हैं। बच्चों की किलकारियों से घर चहक जाता है। उनके सामने हर कोई बच्चा बन जाता है। उनके साथ खेलने के लिए कोई भी नाना-नानी या दादा-दादी के घुटनों में दर्द नहीं होता। उनकी पढ़ाई-लिखाई जैसी सारी जरुरत की चीज़ों के लिए माँ-बाप पहले से ही पैसे जोड़ने शुरू कर देते हैं। लेकिन आज कुछ भी ठीक नहीं है। न पढ़ाई, न लिखाई, न लालन, न पालन और न ही पोषण। आइए बताते हैं कैसे।

संयुक्त राष्ट्र सम्मलेन द्वारा बच्चों के अधिकारों के लिए साल 1992 में कुछ काम किए गए थे। लेकिन आज के समय में भारत को इन दिशा-निर्देशों में काफी काम करना है। आज, भारत में कुपोषण(malnutrition), शिशु मृत्यु दर(infant morality rate), स्कूलों में बच्चों का कम नामांकन होना(low school enrollment) जैसी स्थितियां बनी हुई हैं।

अगर हम बच्चों में होने वाली बिमारी का नाम देखें। तो डायरिया और कुपोषण यह ऐसी बिमारी है जिनसे पांच साल तक की उम्र वाले बच्चों की मौत हो रही है। बच्चों के भोजन में सभी जरुरी पौष्टिक तत्व देने की बात हर डॉक्टर करते हैं लेकिन कैसे? इसका जवाब कौन देगा। डॉक्टर्स कहते हैं कि पांच साल तक ही उम्र तक बच्चों को पौष्टिक खाना ही खिलाना चाहिए। उनके खान-पान पर ध्यान देना चाहिए। लेकिन जो लोग गरीब हैं उनके लिए सरकार क्या मदद करती है, क्या आपको उसके बारे में मालुम है। पौष्टिक खाने के साथ उसमें साफ़ सफाई और किसी भी बीमारी का संक्रमण का न होना भी जरुरी है। हर एक हज़ार बच्चों में, करीब चालीस बच्चों की मौत होना, आम बात हो गयी है। वहीं, हर बीस सेकंड में होने वाली बच्चों की मौत का कारण न्यूमोनिया, जन्म के समय होने वाली परेशानियां, जन्मजात को होने वाला इन्फेक्शन, आदि हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार, देश में 61 मिलियन बच्चे पांच साल की उम्र तक ही जीवित रह पा रहे हैं।

https://data.unicef.org/country/ind/ – UNICEF की एक रिपोर्ट, दिसंबर 2018 के लिए

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट कहती है, साल 2017 में 6,05,000 नवजात बच्चों की मौत हुई। इसके साथ 1,52,000 बच्चों की 5 से 14 साल तक की उम्र में मौत हुई। सरकारी अस्पतालों की आड़ में गरीब माँ-बाप सही और उचित ट्रीटमेंट के लिए जाते हैं लेकिन इसके बावजूद भी नवजात बच्चों की मौत की संख्या कम होती नहीं नज़र आती है। केंद्र सरकार ने एक नयी स्कीम निकाली है, सुरक्षित मातृत्व आश्वासन, जिसमें सरकार गर्भवती महिलाएँ, नई माएँ, और नवजात बच्चों के लिए निःशुल्क सुविधा उपलब्ध कराना है। यह स्कीम 10 अक्टूबर को केंद्रीय मंत्री और परिवार कल्याण मंत्री ने लांच की। इसके साथ देश में गर्भवती महिलाओं के लिए एक और स्कीम चलाई जा रही है – जननी सुरक्षा योजना। इस स्कीम में गर्भवती महिला की डिलीवरी होने के बाद उनके बैंक अकॉउंट में छह हज़ार रुपए दिए जाते हैं। सरकार की मानें तो इस स्कीम का फायदा हर साल करोड़ों महिलाएं फायदा उठा रही हैं। वैसे तो यह स्कीम साल 2005 तक चलती जा रही है। लेकिन इस स्कीम का फायदा क्या सच में महिलाएं उठा रही हैं। इसके साथ देश के सरकारी अस्पतालों में डिलीवरी से पहले सभी तरह की जांच और सभी तरह के इलाज़ जैसे अल्ट्रासाउंड, फ्री हेल्थ चैक-अप, फ्री दवाइयां। और इसके साथ कई स्कीमें व प्रोग्राम चलाए जाते हैं, जिनसे उन्हें हर संभव मदद मिल सके।

बाल श्रम को रोकने का एक ही सुझाव – अच्छी शिक्षा

सरकार बाल श्रम को रोकने के लिए कई योजना बना रही है। परन्तु, आज भी कई बच्चे बाल श्रम की चपेट में हैं। अभी हाल ही में, लोकसभा में बच्चों को निशुल्क और अनवार्य बाल शिक्षा संशोधन विधेयक 2017 पेश किया गया। इससे पहले साल 2009 में निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम में प्रावधान करने की पहल विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने शुरू की थी। हमारे देश में छह से चौदह साल तक के बच्चों को फ्री और जरुरी शिक्षा सरकार उपलब्ध कराती है। यह नियम अप्रैल 2010 में लागू किया गया। सरकारी स्कूलों में गरीब बच्चों को मुफ्त में शिक्षा और भोजन सरकार मुफ्त कराती है। इसके बाद से देश के हर आंगनबाड़ी में और प्राइमरी स्कूल में ‘मिड डे मील’ की सुविधा उपलब्ध कराई जाने लगी।

लेकिन इस भोजन की शुद्धता के चर्चे बड़े अटपटे निकले। कहीं पर बच्चों को खाना उपलब्ध नहीं कराया जाता है। कहीं पर बंद टॉयलेट सीट के ऊपर खाने के बर्तन रखे जाते हैं।

लेकिन इस भोजन की शुद्धता के चर्चे बड़े अटपटे निकले। कहीं पर बच्चों को खाना उपलब्ध नहीं कराया जाता है। कहीं पर बंद टॉयलेट सीट के ऊपर खाने के बर्तन रखे जाते हैं। शायद से यही बड़ा उदाहरण होगा हमारे देश के भविष्य को मिलने वाला भोजन। चलिए, माना की सरकार ने मिड डे मील की शुरुआत इसलिए कि हो जिससे बच्चे खाने के नाम पर शिक्षा ग्रहण करने जरूर आएं। उन्हें अच्छी शिक्षा के साथ अच्छा खाना भी मिले। लेकिन क्या आज के समय में सरकार बच्चों को वह शिक्षा उपलब्ध करा रही है जो कि हमारे माँ-बाप ने हासिल की थी।

हमारे देश में लाखों स्कूल ऐसे हैं जहाँ या तो बच्चे नहीं हैं या फिर शिक्षक। शिक्षकों की बात करें तो कई बार ऐसी वीडियो या फोटो वायरल हो जाती हैं जिनमें शिक्षकों की अजीबोगरीब चीज़ें सामने निकल कर आजाती हैं। अब आपसे क्या ही छुपाएं, देश में वह हालत हैं, की शिक्षकों को यही नहीं मालुम की देश के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति कौन हैं? उन्हें यही नहीं मालुम कि देश में कितने राज्य हैं? अंग्रेजी पढ़ाने वाले शिक्षक को अंग्रेजी में जनवरी भी लिखना नहीं आता। हर भारतीय के मौलिक अधिकारें में ‘राइट टू एजुकेशन’ तो शामिल है लेकिन ऐसी एजुकेशन। न भाई न। उसके साथ देश में स्वास्थ्य व्यवस्था भी डगमगाती ही नज़र आती है। कई बार ख़बरों में यह भी आता है कि किसी महिला ने अस्पताल के बहार ही नवजात को जन्म दे दिया। अब ऐसे में यह खबरें बड़ी दुखदायी होती हैं।