पुरी के राजा गुरुवार को नगर भ्रमण के लिए निकल को तैयार हैं। बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के साथ रथ पर सवार श्रद्धालुओं के बीच में होंगे। भारत के उड़ीसा राज्य के पुरी में जगन्नाथ मंदिर वैष्णव संप्रदाय का यह मंदिर भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। चार धाम से एक जगन्नाथ पूरी माना जाता है। कहते हैं कि बाकी सभी धाम घूमने के बाद ही यहाँ आना चाहिए। बैकुंठ धाम के अलावा इस मंदिर को शाकक्षेत्र, नीलांचल और नीलगीरि भी कहा जाता है। यहाँ भगवान कृष्ण नीलमाधव के रुप में रहते हैं। काष्ठ के पवित्र पेड़ की लकड़ियों से बनीं तीनों भगवान की मूर्तियों को हर बारह साल बाद एक बड़े आयोजन में विधि अनुसार बदला जाता है।
कहा जा रहा है कि नौ दिन तक चलने वाले इस त्यौहार में इस बार दुनिया भर से करीब दो लाख श्रद्धालुओं के आने की आशंका है जो कि पिछले साल से तीस प्रतिशत ज्यादा है। सबसे आगे भगवान बलभद्र जी का रथ तालध्वज, फिर बहन सुभद्रा जी का पद्म रथ और अंत में भगवान जगन्नाथ जी के रथ नंदी घोष को भक्त श्रद्धापूर्वक खींचते हैं।
गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी व उप मुख्यमंत्री नितिन भाई पटेल ने गुरुवार सुबह मंदिर पहुँच कर भगवान पुजा अर्चना की। रथ के आगे परंपरागत तरीके से झाड़ू भी लगाई।
इससे पहले केंद्रीय ग्रहमंत्री अमित शाह सुबह – सुबह पत्नि सोनल शाह के साथ मंगला आरती के लिए पहुंचे।
वहीं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट के जरिए सभी को शुभकामनाएं दी, लिखा – ‘रथ यात्रा के विशेष अवसर पर सभी को शुभकामनाएँ। हम भगवान जगन्नाथ से प्रार्थना करते हैं और सभी के अच्छे स्वास्थ्य, सुख और समृद्धि के लिए उनका आशीर्वाद चाहते हैं। जय जगन्नाथ।’
क्यों होती है भगवान की अधूरी मूर्ति की पूजा
भगवान जगन्नाथ ने मालवा के राजा इंद्रदयुम्न को सपने में दिखाई दिए। भगवान ने उनसे कहा कि पर्वत नीलांचल की एक गुफा में नीलमाधव नाम से उनकी एक मूर्ति है। एक मंदिर बनवाकर मूर्ति को स्थापित कराओ। प्रातः काल ही राजा ने मंत्रि को उस गुफा व मूर्ति के पता लगाने का आदेश दे दिया।
राजा के एक प्रतिनिधि ने छल से सबीर कबीले के लोगों से नीलमाधव की मूर्ति लेकर राजा को सौंप दी। जिससे कबीले के लोग दुःखी हो गए। इसको देख भगवान फ़िर से गुफा में विराजमान हो गए। भगवान के दिए आदेश को मान कर राजा ने विशाल मंदिर बनवाया और समुद्री लकड़ी से भगवान की मूर्ति का निर्माण कराया।
तो भगवान विश्वकर्मा एक वृद्ध के रूप में राजा के सामने प्रकट हुए और राजा से 21 दिनों में मूर्ति बनाने की इच्छा रखी। लेकिन साथ ही एक शर्त रखी कि मूर्ति का निर्माण वे अकेले एक बंद कमरे में करेंगे। व जब तक मूर्ति बन नहीं जाती तब तक कोई उसे नहीं देखेगा। राजा शर्त मान गए। मूर्ति के निर्माण का कार्य़ शुरु हुआ, कुछ दिन बीतने के बाद रानी ने मूर्ति को देखने की इच्छा हुई। राजा ने कमरे का द्वार खोलने का आदेश दिया। द्वार खुलते ही विश्वकर्मा वहां से गायब हो गए। वहां सिर्फ भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की अधूरी मूर्तियां पड़ी थी। जिसके बाद भगवान जगन्नाथ अपने भाई बहन के साथ इस रुप में विराजित हैं।
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