लाल बहादुर शास्त्री – देश के लिए दो अक्टूबर का दिन सिर्फ राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को याद करना ही नहीं, बल्कि लाल बहादुर शास्त्री को भी याद करना है। दो अक्टूबर का दिन देश के दो महान विभूतियों की जयंती वाला दिन है। आज देश के राष्ट्रपिता की 150वी जयंती है। वहीं, आज़ाद भारत देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की 116वी जयंती है। लाल बहादुर शास्त्री ने बेहद सादा जीवन जिया। वह एक कुशल और गाँधी के विचारों पर चलने वाले नेता थे।
उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में, तारीख़ 2 अक्टूबर 1904 को लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म हुआ। उन्हें घर में सब प्यार से ‘नन्हें’ कह कर बुलाते। शास्त्री जी के पिता का नाम मंशी प्रसाद श्रीवास्तव और माता का नाम राम दुलारी था। शास्त्री जी की धर्मपत्नी का नाम ललिता देवी था। बचपन में पिता की मौत के बाद, शास्त्री जी अपनी माता जी के साथ अपने नाना के यहाँ मिर्जापुर चले गए। वहां रह उन्होंने प्राथमिक शिक्षा विषम परिस्थितियों से पूरी करी। कहा जाता है कि गाँवों में स्कूल की कमी होने के कारण वह नदी तैरकर रोज़ स्कूल जाते थे।
लाल बहादुर शास्त्री जब काशी विद्यापीठ से संस्कृत की पढ़ाई करके निकले तो उन्हें एक उपाधि दी गई। वह उपाधि थी – ‘शास्त्री’। महज़, सोलह साल की उम्र में उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी और महात्मा गाँधी के साथ असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। देश के और नेताओं की तरह शास्त्री जी में भी देश को आज़ाद कराने की आग थी। सन 1920 में शास्त्री आज़ादी की लड़ाई में निडर कूद पड़े। इस लड़ाई में वह कई बार गिरफ्तार भी हुए और पुलिस की कार्रवाई के आड़े भी आए।
जब दिया था “जय जवान, जय किसान” का नारा
सोने की चिड़िया कहे जाने वाला देश भारत को अंग्रेजी हुकूमत से आज़ादी मिलने के बाद शास्त्री सन 1951 में राजधानी दिल्ली आ गए। उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल में कई विभागों में काम किया। उन्होंने रेल मंत्री, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, गृह मंत्री के साथ कई महत्वपूर्ण पद संभाले। सन 1964 में भारत-पाकिस्तान के युद्ध के दौरान लाल बहादुर शास्त्री को देश का दूसरा प्रधानमंत्री बनाया गया। प्रथम प्रधानमंत्री के निधन के बाद उन्हें प्रधानमंत्री का कार्यभार संभालने का पद दिया गया। इस युद्ध के दौरान देश में अन्न की कमी हो गई। उस परेशानी की वजह से शास्त्री ने अपनी तनख्वाह लेनी बंद कर दी थी। उन्होंने देश के लोगों से अपील की कि वो हफ्ते में एक दिन एक वक़्त का व्रत रखें। और उनकी इस बात को सारे देश ने माना और देश के छोटे हो या बड़े, किसी भी रेस्ट्रॉ में चूल्हा नहीं चला। और मंजर यह देश में पहली बार हो रहा था। इसी समय शास्त्रीजी ने वह नारा दिया जो हर भारतीय को मुंहज़ुबानी याद है, वह है – जय जवान, जय किसान।
महात्मा गाँधी को अपने गुरु मानने वाले शास्त्रीजी ने एक बार यह कहा था – ‘मेहनत प्रार्थना करने के समान है।’ इसके साथ वह भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठ पहचान बन गए थे। लाल बहादुर शास्त्री ने कहा था कि ‘जो शासन करते हैं उन्हें देखना चाहिए कि लोग प्रशासन पर किस तरह प्रतिक्रिया करते हैं। अतः जनता ही मुखिया है।’
साल 1966 की 11 जनवरी को ताशकंद में शास्त्री जी ने अपनी आखिरी सांस ली। पाकिस्तान के साथ शांति के समझौते पर करार के ठीक बारह घंटे बाद ही शास्त्री जी की अचानक मृत्यु हो गई। लेकिन उनकी मौत को आज भी देश में कई लोग एक रहस्य की तरह ही देखते हैं।