गर्मी ने तो तूफ़ान मचाया लेकिन सर्दी का कोई नाम नहीं, क्या धरती खतरे में तो नहीं?

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क्या धरती खतरे में तो नहीं?

क्या धरती खतरे में तो नहीं? – अब गर्मी के दिन जाने को है और सर्दी आँगन में खड़ी है। लेकिन ऐसा नहीं लग रहा है कि सर्दियां आने वाली हैं। इस समय सभी के घरों में गर्म कपड़े निकल जाया करते थे। दुकानों में टोपी या मफलर मिलने लगते थे। लोग नए-नए जैकेट और स्वेटर खरीदने लगते थे। दादी-नानी फिर से ऊन की बुनाई करने लग जाती थीं। सब्ज़ी वालों के यहाँ मूली, मैथी, बथुआ, आदि साग की सभी जरुरी चीज़ें मिलनी शुरू हो जाती हैं। मिठाई के ठेलों पर गज़क, रेवड़ी, मूंगफली मिलने लग जाती हैं। सब्ज़ी वाले ताज़ी-ताज़ी गाजरों को चमकाने में लग जाते हैं। क्योंकि अब घरों में गाजर के हलवे की महक आने वाली है।

परन्तु, इन सबके लिए बढ़िया सर्दी भी तो होनी चाहिए। पर सवाल अब यह है कि सर्दी कहाँ है ? अब इस देरी से आने वाली सर्दी के कुछ कारण सामने आते हैं। जैसा कि, ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming). धरती की सतह के तापमान के साथ-साथ वायुमंडल में हो रही वर्तमान वृद्धि को ‘ग्लोबल वार्मिंग’ कहते हैं। पिछले सौ सालों से दुनिया में धरती का औसतन तापमान 0.75 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। जिसमें ज़्यादा असर 1975 के बाद देखने को मिला है।

क्या धरती खतरे में तो नहीं? - जब पहली बार धरती के तापमान में बढ़त को देखा गया, तो यह बात सामने आयी थी कि यह सब प्राकर्तिक कारणों का ही नतीजा है।

क्या धरती खतरे में तो नहीं? – जब पहली बार धरती के तापमान में बढ़त को देखा गया, तो यह बात सामने आयी थी कि यह सब प्राकर्तिक कारणों का ही नतीजा है। लेकिन आज इस स्थिति को मानव गतिविधियों में गिना जाता है। अगर इस परेशानी को आसान भाषा में समझा जाए तो, वातावरण में अधिक ‘कार्बन डाइऑक्सइड’ यानी Co2 का होना ही असल समस्या है। Co2, एक लेयर की तरह गर्मी को उसमें फंसाने का काम करती है और गृह को गर्म करती है। बहरहाल, हम एनर्जी के लिए धरती पर कोयला, तेल और प्राकृतिक गैसों और वृक्षारोपण के लिए जंगलों को जलाते हैं, इससे हमारे वायुमंडल में कार्बन ज़्यादा जमा हो जाता है।

क्या धरती खतरे में तो नहीं? - इस बिमारी का एक और कारण है, प्रदुषण (Pollution). यह तो सभी जानते होंगे कि प्रदुषण हम इंसानों के लिए ठीक नहीं है।

इस बिमारी का एक और कारण है, प्रदुषण (Pollution). यह तो सभी जानते होंगे कि प्रदुषण हम इंसानों के लिए ठीक नहीं है। हवा में उड़ती धूल, कारखानों से निकलता गंदा धुंआ, जंगल में लगी आग, पेड़ों का कटना, यही सब कारण है, धरती में बढ़ते प्रदुषण का। जंगल जल कर राख हो रहे हैं, यही राख वायु में मौजूद हो कर हमारे शरीर में जा रही है। बढ़ती आबादी भी प्रदुषण का एक कारण है। आबादी बढ़ रही है, उससे सड़कों पर जाम भी लग रहा है। गाड़ियों से निकलता धुंआ भी हवा में अपनी छाप छोड़ने लगा है। प्रदुषण का होना सिर्फ वायु में नहीं है, वह पानी में भी है और ध्वनि में भी है। लेकिन सबसे ज़्यादा परेशान लोग वायु प्रदूषण से ही हो रहे हैं। यह, हम मानव शरीर को अंदर से ही काला और खोखला करता जा रहा है।

क्या धरती खतरे में तो नहीं? - हाल ही में, देश के उत्तरी हिस्सों में किसानों ने पराली जलाई थी। इस पराली का धुंआ बढ़ते-बढ़ते पुरे देश में फ़ैल गया है।

हाल ही में, देश के उत्तरी हिस्सों में किसानों ने पराली जलाई थी। इस पराली का धुंआ बढ़ते-बढ़ते पुरे देश में फ़ैल गया है। जिसके कारण अब लोग ‘स्मॉग’ की धुंध में सांस ले रहे हैं। इसी मुख्य कारण से लोग बिमारी को अपने घर में बुलावा भी दे रहे हैं। धुंए की हवा को साँस में तब्दील करने से बचने के लिए लोग घर में ‘एयर प्यूरीफायर’ भी लगा रहे हैं। घर में सामान से ज़्यादा पेड़-पौधों को जगह दी जा रही है। अब लोगों को यह समझ आने लगा है कि अगर भविष्य को बचाना है, तो पर्यावरण को सुरक्षित रखना ही होगा।

क्या धरती खतरे में तो नहीं? - अब जब धरती बीमार हो रही है तो, इस पर रह रहे लोग भी बीमार होंगे। धरती को बीमार करने का खामियाज़ा हमें ही भुगतना पड़ेगा।

क्या धरती खतरे में तो नहीं? – अब जब धरती बीमार हो रही है तो, इस पर रह रहे लोग भी बीमार होंगे। धरती को बीमार करने का खामियाज़ा हमें ही भुगतना पड़ेगा। अब जिधर देखो उधर सिर्फ धुंआ ही धुंआ है। इसका असर दिल्ली-एनसीआर जैसे क्षेत्रों में ज़्यादा दिखाई देता है। वजह कई हैं, लेकिन इन वजहों को ख़त्म करने की प्लानिंग नहीं है। सरकार तो ‘पेड़ बचाओ, पर्यावरण बचाओ’ जैसे स्लोगन दे रही है, पर क्या इन चीज़ों का असर हम लोगों पर दिख रहा है या नहीं ? जानते तो हम सभी है कि धरती खतरे में हैं, लेकिन क्या हम उसको बचाने के प्रयास कर रहे हैं या नहीं ? क्या सिर्फ किताबों में या फाइलों में इस मुद्दों को सही जगह मिलेगी ? क्या इस मुद्दे पर एक अच्छा बड़ा फैसला लिया जाएगा ? जिस धरती माँ की हम कसमें खाते हैं हम उसे बचा पाएंगे या नहीं ? यह सवाल सभी के पास हैं, लेकिन सही जवाब किसी के पास नहीं।