Article-15 : कितना जानते हैं आप इसके बारे में, सोचिए और समझिए …

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Article-15

Article-15 – हमारे देश में आज भी लोगों को उनकी जाति के हिसाब से बाँट दिया जाता है। और यह ‘जातिवाद’ अंधविश्वास की तरह सभी लोगों के मन में घर कर रहा है। जाति के हिसाब से उन्हें पढ़ाई से लेकर नौकरी और घर से लेकर घोड़ा-गाड़ी सभी चीज़ों पर आंकलन किया जाता है। यहीं नहीं, लोग इस बात पर भी ज़्यादा गौर देते हैं कि उन्हें किस से बात करनी है और कितनी। इसके साथ, किसके साथ बैठ कर खाना खाना है। भले ही हम देश को आधुनिक तकनीकों वाला बताएं। पर, जो है वो तो साफ़ दिख जाता है।

भारत का संविधान लिखा गया था – 26 जनवरी, 1950। इसमें हर भारतीय के लिए मौलिक अधिकारों का भी वर्णन है। लेकिन जैसे जैसे साल बीते यह ख़बरों में आता रहा। कई बार तो देश के संविधान संशोधन करने के लिए सत्ता में बैठी पार्टी में और विपक्षी पार्टी में कई बार बैठक भी होती ही रहती हैं। वरना इसके अलग-अलग भागों को उठाकर चर्चा-ए-विषय बन जाता है। लेकिन सवाल यहाँ नहीं पैदा होता कि ‘संविधान में सशोधन क्यों ?’

‘Article-15’ – नाम तो सुना होगा ?

Article-15 कहता है, समानता का अधिकार। Article-15(1), कहता है की राज्य में किसी भी नागरिक को किसी भी धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, या जन्मस्थान या इसमें से किसी के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करेगा। Article-15 के अनुसार, इसके अलावा सरकारी या अर्ध-सरकारी कुओं, तालाबों, स्नानघाटों, सड़कों और पब्लिक प्लेस के इस्तेमाल से भी किसी भी व्यक्ति को सुविधा देने से नहीं रोका जाएगा।

इस Article-15 में यह बोला गया किसी भी राज्य को महिलाओं और बच्चों को विशेष सुविधा देने से नहीं रोका जाएगा। इसके साथ Article-15 किसी भी राज्य को सामाजिक या शैषणिक दृष्टि से पिछड़े हुए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई विशेष प्रावधान बनाने से नहीं रोकेगा।

अभी कुछ ही दिनों पहले देश के सिनेमाघरों में एक बड़ी ही अच्छी मूवी चली। नाम था आर्टिकल-15 इस फिल्म में मुख्य किरदार निभाया था, बेहतरीन एक्टर आयुष्मान खुराना ने। यह फिल्म एक सच्ची घटना पर आधारित थी। घटना थी देश के बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के जातिवाद से जुड़ी हुई। हमारे देश में इससे पहले भी कई फिल्में इसी मसले पर बनी। जैसे – सुजाता, अछूत कन्या, आदि। अब आप समझ रहे होंगे कि इस समय इस अनुछेद को फिल्मों की दुनिया से समझाना ? बड़ा ही अटपटा सवाल और इसका अटपटा जवाब।

चलिए, इसे थोड़ा सरल बनाया जाए। हमारे देश के संविधान में हर भारतीय नागरिक को मौलिक अधिकार दिए गए हैं। दिए गए अधिकारों को देने का उद्देश्य यह था कि देश का हर नागरिक सम्मान के साथ जीवन सके। लेकिन क्या आज के समय में सभी जाति या धर्म के लोग एक सम्मानित जीवन व्यतीत कर रहे हैं ? Article-15 के दूसरा क्लॉज़ कहता है किसी भी व्यक्ति को किसी भी जगह चाहे वह कोई मंदिर खो या मस्जिद, दूकान, होटल, सार्वजनिक भोजनालयों, स्कूलों या विश्विद्यालयों आदि में जाने से नहीं रोका जाएगा।

Article-15 का तीसरा क्लॉज़ कहता है की किसी भी महिला या किसी भी बच्चे के लिए अगर कोई भी स्पेशल प्रोविज़न बनाये जाते हैं तो उन्हें इसके लिए भेदभाव या रोका न जाए। जैसे इस समय देश में महिला आरक्षण और बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा सरकार द्वारा दी जा रही है।

आपको यह तो याद है न कि देश में शिक्षा और नौकरी के लिए रिजर्वेशन या फीस में छूट का भी चलन है। यही चलन, Article-15 के क्लॉज़ चार में कहा गया है कि सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग यानि एससी-एसटी या ओबीसी के लिए स्पेशल प्रोविज़न बनाने की पूरी आज़ादी है। Article-15 के चौथे क्लॉज़ का साथ देता है पाँचवा क्लॉज़। यह क्लॉज़ कहता है, आर्टिकल-15 का कोई भी नियम-कानून राज्य को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से विशेष प्रावधान बनाने से नहीं रोक सकता।

अभी हल ही में, Article-15 में एक और क्लॉज़ को जोड़ा गया। यह क्लॉज़ है छठा। इस क्लॉज़ के मुताबिक़ राज्य समय समय पर आर्थिक रूप से कमजोर सेक्शन पर ध्यान देगा।

इस Article-15 को ध्यान से समझें तो कई मुद्दे सामने आते हैं। सामान्य वर्ग के लोग यह कहते हैं कि एससी-एसटी और ओबीसी वाले वर्ग को विशेष प्रावधान नहीं मिलना चाहिए। जिसके अभाव से काफी बार सामान्य वर्ग में गुस्सा या रोष साफ़ दिखाई देता है। आज भी देश में कहीं न कहीं छू-अछूत के किस्से सामने हैं। आज भी देश के कई हिस्सों में लड़कियों या महिलाओं को जाने की मनाही है। क्या आज भी देश के आधुनिक होने के बावजूद भी हम इन दकियानूसी बातों पर फिजूल का समय ख़राब कर रहे हैं ? अब ये बात तो आपको समझनी होगी कि इस आर्टकिले का क्या कहना है, क्या मतलब है और क्या हो रहा है।