Sheila Dixit (1938-2019) : हमेशा याद आएँगी कांग्रेस की बेटी

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शीला दीक्षित

दिल्ली के रंग रूप को बदलने वाली पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का निधन शनिवार की दोपहर को हुआ। वह दिल्ली के फोर्टिस एस्कॉर्टस हॉस्पिटल में भर्ती थीं, उन्हें कार्डियेक अरेस्ट आया था। बताया जा रहा है की उनकी सेहत काफी लंबे समय से बिगड़ी हुई थी। रविवार को पूरे राजकीय सम्मान के साथ सभी ने उन्हें अलविदा कहा।

उससे पहले उनका पार्थिव शरीर कांग्रेस के मुख्यालय लाया गया। इस दौरान कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गाँधी और उनकी बेटी प्रियंका गाँधी के साथ देश के जाने माने लोग उनके साथ आखिरी पल तक रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल शनिवार की देर शाम को निजामुद्दीन स्थित शीला दीक्षित के आवास पहुंचे। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के अलावा कई दिग्गज नेताओं ने उनके अंतिम दर्शन कर श्रद्धांजलि दी। केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में दो दिन के राजकीय शौक का ऐलान किया। 15 साल दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित ने दिल्ली में बेहतरीन बदलाव दिए।

शीला दीक्षित का जन्म 31 मार्च 1938 में पंजाब के कपूरथला में हुआ। 2014 में वो दिल्ली की राज्यपाल बनीं,लेकिन बाद में उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इस साल उत्तर-पूर्व दिल्ली के लोकसभा चुनाव भी लड़ी थी लेकिन उन्हें भाजपा के मनोज तिवारी से हार मिली थी। संयुक्त राष्ट्र में 1984 से 1989 तक उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व भी किया था। 1990 में उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें 23 दिनों के लिए जेल भेजा गया। जिसका कारण यह था कि उन्होंने राज्य में महिलाओं पर हुई हिंसा के विरुद्ध एक अभियान छेड़ दिया था। 

दिल्ली के मिरांडा हाउस कॉलेज से पढ़ी शीला दीक्षित की शादी आईएएस अफसर रहे विनोद दीक्षित से हुई। उनके ससुर कांग्रेस पार्टी के नेता रहे उमाशंकर दीक्षित जाने माने नेता रहे हैं। शीला दीक्षित और विनोद दीक्षित के दो बच्चे हैं, संदीप दीक्षित और लतिका सयद।

कांग्रेस की बेटी कही जाने वाली शीला दीक्षित ने साल 1998 से 2013 तक देश की राजधानी दिल्ली का सारा पलटवार कर दिया था। उनके काम की तारीफ़ हर कोई करने लगा था। राजधानी में बनी बेहतरीन सड़कें और फ्लाईओवरों से हर कोई खुश रहने लगा था। राजधानी में मेट्रो रेल भी इन्हीं की देन थी। राजनीतिक जीवन में आए उतार चढ़ाव ने उन्हें कभी कमजोर न होने दिया। और वो उतनी ही हिम्मत व सहजता से अपने काम के प्रति कर्तव्यनिष्ठ रहीं। 1998 में विधानसभा के चुनाव से पहले वो दिल्ली की कांग्रेस प्रमुख भी रहीं। उनके नेतृत्व के परिणाम में पार्टी 70 में से 52 सीटें जीत गयीं। 2003 और 2008 के चुनावों में भी उन्होंने जीत का स्वागत किया।


2010 में दिल्ली में हुए काॅमनवेल्थ गेमस में कांग्रेस सरकार का नाम भ्रष्ट पार्टी दिया जाने लगा था। उस वक्त्त शीला दीक्षित भी सवालों के घेरे में बुरी तरह घिर गईं थीं। जिसके कारण दिल्ली की जनता नए मुख्यमंत्री और भ्रष्टाचार विरोधी पार्टी का चुनाव करना चाह रही थी।