अपनी लिखावट से इश्क़ और मोहब्बत समझाने वाले गुलज़ार साहब के कुछ शेर

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गुलज़ार साहब की शायरी

Gulzar Sahab Urdu Quotes- गुलज़ार, का जन्म 18 अगस्त 1936 में दीना, झेलम जिला, पंजाब, ब्रिटिश भारत में हुआ था। अब यह हिस्सा पाकिस्तान में है। बचपन में उनका नाम, सम्पूर्ण सिंह कालरा था। गुलज़ार के पिता का नाम, माखन सिंह कालरा और माँ का नाम सुजान कौर था। गुलज़ार, अपने पिता की दूसरी पत्नी की इकलौती संतान थे।

गुलज़ार, को सभी लोग प्यार से ‘गुलज़ार साहब’ कहकर बुलाते हैं। देश का जब विभाजन किया जा रहा था तो उनका परिवार पंजाब से अमृतसर में आकर बस गया। गुलज़ार साहब के बचपन में ही उनकी माँ उन्हें छोड़ कर चली गई थी।

शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है

ज़िन्दगी यूँ ही बसर तनहा
काफ़िला साथ और सफर तनहा

Gulzar Sahab Urdu Quotes- काम की तलाश में, गुलज़ार साहब अमृतसर से मुंबई की तरफ चल दिए थे। इस बड़े शहर में आकर उन्होंने एक गैरेज में मैकेनिक का काम किया था। उन्हें कविताएं लिखने का बहुत शौक था, जो वह खाली समय में लिखा करते थे। उनके गैरेज के पास, एक बुक स्टोर था, जहाँ से वह आठ आने के किराए पर दो किताबें पढ़ने का चस्का लगा।

कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ
किसी की आंच में हम को भी इंतज़ार दिखे

हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हें नहीं तोड़ा करते

एक बार, उस समय के मशहूर डायरेक्टर विमल रॉय की गाड़ी खराब हो गई थी। विमल, उसी गैरेज में पहुंचे थे जहाँ गुलज़ार साहब काम किया करते थे। डायरेक्टर साहब ने गुलज़ार और उनकी किताबों को देखा। डायरेक्टर साहब ने पुछा – ‘कौन पढ़ता है यह सब?’ गुलज़ार साहब ने खुद की तरफ इशारा करके कहा -‘मैं’.

जिस की आँखों में कटी थीं सदियां
उस ने सदियों की जुदाई दी है

वो उम्र कम कर रहा था मेरी
मैं साल अपने बढ़ा रहा था

Gulzar Sahab Urdu Quotes

डायरेक्टर साहब ने गुलज़ार को अपना पता देते हुए अगले दिन मिलने को बुलाया। गुलज़ार इस बारे में और विमल रॉय के बारे में बात करते हुए भावुक हो जाते हैं। वह कहते हैं, ‘जब मैं पहली बार विमल रॉय के दफ्तर गया था तो उन्होंने कहा कि अब कभी गैरेज में मत जाना।’

ये शुक्र है की मिरे पास तेरा ग़म तो रहा
वरना ज़िन्दगी भर को रुला दिया होता

खुली किताब के सफ़हे उलटते रहते हैं
हवा चले न चले दिन पलटते रहते हैं

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Gulzar Sahab Urdu Quotes- फिर क्या था, विमल रॉय के साथ रहते-रहते गुलज़ार की प्रतिभा और निखरने लगी थी। साल 1963 में एक फिल्म आई ‘बंदिनी’ .इस फिल्म में गुलज़ार का लिखा गाना ‘मोरा गोरा अंग लेइ ले, मोहे श्याम रंग देइ दे’ को खूब पसंद किया जाने लगा। यहाँ से उनकी किस्मत चमकने लगी।

यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता
कोई एहसास तो दरिया की अना का होता

आइना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई