“मेरा रंग दे बसंती चोला….”, देश के लिए हँसते हँसते फांसी पर झूल गए थे ये तीनों

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अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लेने वाले तीन वीर सपूत – भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव। इन तीनों की नाराज़गी थी अंग्रेजों के अत्याचार से। इन तीन क्रांतिकारियों को देश कभी नहीं भूल सकता। शहीद भगत सिंह का नाम आते ही हर युवा जोश से भर जाता है। मन में कुछ कर गुजरने की लगन सामने आ जाती है।

23 मार्च 1907 को दी थी देश के लिए शहादत

साल 1931 का था। तारीख थी 23 मार्च। इस दिन देश के इन क्रांतिकारी वीरों भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दी गयी। यह फांसी लाहौर सेंट्रल जेल में दी गयी। गुनाह था, 1928 में लाहौर में एक ब्रिटिश जूनियर पुलिस अधिकारी को गोली मार कर मौत के घाट उतारना। ब्रिटिश अधिकारी का नाम था जॉन सॉन्डर्स। उस समय भारत के तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड इरविन ने इस मामले को देखा। और मुक़दमे के लिए एक विशेष ट्राइब्यूनल का गठन किया था। इस मुक़दमे के फैसले में इन तीनों को फांसी की सजा तय की गयी।

असल में पुलिस अधीक्षक को मारने का प्लान इसीलिए बनाया था क्योंकि पुलिस की पिटाई से लाला लाजपत राय की मौत हो गयी थी। इसका बदला लेने के राजगुरु भगत सिंह के साथ मिल गए और दोनों खुद गिरफ्तार भी हो गए।

कहा जाता है की इन तीनों को फांसी लगाने की तारीख 24 मार्च थी, लेकिन इन्हें ठीक 11 घंटे पहले ही फांसी दे दी गयी। 23 मार्च को शाम के 7 बजकर 33 मिनट इन तीनों को फांसी दे दी गयी। जब इन तीनों को सजा के लिए ले जाया जा रहा था तब ये तीनों एक गीत गए रहे थे। गीत था – मेरा रंग दे बसंती चोला, मेरा रंग दे बसंती चोला।

कहाँ कहाँ जन्मे थे ये तीनों शेर

भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर 1907 को जिला लायलपुर जो की अब पाकिस्तान का हिस्सा है के एक गाँव बावली में हुआ था। भगत सिंह का परिवार सामान्य वर्ग से था। कहा जाता है की भगत सिंह के पिता और चाचा दोनों स्वतंत्रता सेनानी थे।

सुखदेव का जन्म 15 मई 1907 को पाकिस्तान के लायलपुर में ही हुआ था। भगत सिंह और सुखदेव का घर आस पास था। दोनों की दोस्ती भी गहरी थी।

राजगुरु का जन्म 24 अगस्त 1908 को पुणे के खेड़ा में हुआ था। राजगुरु के बारे में कहा जाता है की वो बाल गंगाधर तिलक की बायतों से काफी प्रभावित थे।

इंकलाब जिंदाबाद

इतिहासकार कहते हैं की जब तीनों को फांसी के लिए ले जाया जा रहा था तो तीनों को स्नान कराया गया और तीनों के जब वजन नापा गया तो वो पहले से ज़्यादा था। जेल में कैदियों का शोर था, नारे लग रहे थे इंकलाब जिंदाबाद के। और भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु सुर से सुर मिला रहे थे।