Independence Day : विदेशी नहीं स्वदेशी बन रहा है भारत, बंगाल विभाजन भी थी एक वजह

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स्वदेशी आंदोलन

आज़ादी से पहले देश में हर दुकान में सिर्फ अंग्रेजी माल मिल रहा था। कपड़े, खाना, दवाई, किताबें सब कुछ अंगेजों की देन थी। जिसके कारण भारतीय व्यापार घाटे में था। अब ऐसे में एक फैसला लिया गया वो था – विदेशी माल का बहिष्कार और देसी माल का ज़्यादा इस्तेमाल। दिसम्बर 1903 में देश में एक बात सबके कानों में पहुँच चुकी थी। बात थी बंगाल के विभाजन की। सुनने में आ रहा था की बंगाल के हिस्से होंगे। इसको लेकर लोगों को चिंता होने लगी और लोग इसके लिए लोगों ने बैठक करनी शुरू कर दी।

स्वदेशी आंदोलन – 7 अगस्त 1905 को कलकत्ता के टाउन हॉल में एक मीटिंग में इस आंदोलन को करने की बात सामने आयी थी। इस आंदोलन की शुरुआत हुई थी बंगाल विभाजन के विरोध में। इस आंदोलन का विचार आया था साल 1905 में ही कृष्ण कुमार मित्र के पात्र संजीवनी में। इस आंदोलन ने देश के नेताओं ने भारत के लोगों से अपील की थी वो लोग सरकार द्वारा दी गयी सेवाओं, स्कूलों, न्यायालयों और विदेशी चीज़ों का बहिष्कार करें, इनकी जगह स्वदेश चीज़ों को और राष्ट्रीय कॉलेजों और स्कूलों की स्थापना करके राष्ट्रिय शिक्षा की और ध्यान दें। इस आंदोलन को आर्थिक आंदोलन के तौर पर देखा जाने लगा।

इस आंदोलन को करने का परिणाम सफल था। इस आंदोलन में बंगाली जमींदारों ने भी हिस्सा लिया। छात्रों ने विदेशी कागज़ से बनी किताबों का बहिष्कार किया। इस आंदोलन के चलते बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल और अरविन्द घोष के अलावा कई नेता गिरफ्तार क्र जेल में बंद कर दिए गए। इस आंदोलन के कारण कई भारतीय लोगों को अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी। आंदोलन में भाग लेने वाले छात्रों को स्कूलों और कॉलेजों के अंदर आने नहीं दिया गया। उस समय ‘वन्दे मातरम’ गीत गाना किसी देशद्रोह से कम नहीं था।

देश में विदेशी कपड़ों को जलाया जा रहा था। अग्रेंजी खाना और दवाइयों को बरबाद किया जा रहा था। यह आंदोलन भी जोश में था।

देश में बन रही चीज़ों पर ध्यान दिया जाने लगा। इस आंदोलन की आग की लपटें पूरे भारत देश में फैलने लगी थीं. इस आंदोलन में विदेशी कपड़े और नमक का इस्तेमाल कोई भी नहीं करना चाहता था। आंदोलन को लेकर महात्मा गाँधी ने कहा कि भारत देश का वास्तविक राज बंगाल के विभाजन के बाद में शुरू हुआ है। अब हर क्षेत्र यानि उद्योग, शिक्षा, संस्कृति, साहित्य और कपड़ों में भी स्वदेश की भावना का संचार हुआ है।