International Men’s Day – वक़्त के साथ-साथ सब कुछ बदल रहा है, यहाँ पुरुष अब अपने हक़ के लिए चींख रहा है

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International Men's Day

International Men’s Day आज है। ट्वीटर पर #internationalmensday ट्रेंड कर रहा है। जिस तरह से दुनिया International Women’s Day मनाती हैं, उस जोश या उत्साह से International Men’s Day नहीं मनाया जाता। लेकिन, क्या यह International Men’s Day सिर्फ नाम के लिए रह गया है?

यह बात आप जानते हों या नहीं, लेकिन दुनिया में महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों को भी भेदभाव, शोषण, उत्पीड़न, हिंसा और असमानता जैसी परेशानियां झेलती पड़ती हैं। इन्हीं परेशानियों से बचाने के लिए और उन्हीं उनके सभी अधिकार दिलवाने के लिए यह दिन मनाया जाता है। इस International Men’s Day को यूएनएसको का पूरा सहयोग है। दुनिया के 80 देशों में अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया जाता है।

इस बार की थीम है – Making a Difference for Mens and Boys

International Men’s Day की शुरुआत थॉमस ओस्टर ने 7 फरवरी 1992 को की थी। इस दिन को मनाने के लिए एक साल पहले इसकी कल्पना की गई थी। फिर, साल 1999 में इस प्लान को त्रिनिदाद और टोबैगो में दुबारा शुरू किया गया।

साल 1923 में लोगों में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की तरह अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाए जाने की मांग की जाने लगी थी। इसके लिए कई आंदोलन किए गए। उस समय यह मांग रखी जाने लगी कि 23 फरवरी को पुरुषों के सम्मान के लिए ख़ास दिन मनाया जाए। साल 1968 में अमरीकी पत्रकार जॉन पी. हैरिस ने एक आर्टिकल लिखा था. उन्होंने उस आर्टिकल में लिखा, सोवियत सिस्टम में संतुलन की कमी है।

उन्होंने यह भी लिखा था, कि यहाँ महिलाओं के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस तो मनाया जाता है लेकिन पुरुषों के लिए ऐसा कोई भी दिन नहीं है। फिर, 19 नवंबर 1999 में त्रिनिदाद और टोबैगो में इस दिवस को मनाया गया। डॉ. जीरोम तिलक सिंह ने इस दिन के लिए बहुत योगदान दिया था। यह ख़ास दिन, उनके पिता के बर्थडे के दिन मनाया जाता है। फिर, धीरे-धीरे दुनिया ने इस दिन को अपनाया।

इंडिया ने 2007 में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया गया, इसके बाद से हर साल भारतीय पुरुषों के सम्मान के लिए यह दिन मनाया जाता है।

Mens Abuse इन इंडिया

देश में पुरुषों के साथ शोषण बढ़ता ही जा रहा है। यही नहीं, कि शारीरिक या फिर मानसिक शोषण सिर्फ और सिर्फ महिलाओं के साथ ही हो, यह एक पुरुष के साथ भी होता है। अब यह समस्या सिर्फ एक ‘जेंडर’ के लिए ही सीमित नहीं है। एक टाइम था, जब महिलाएं ही घरेलु हिंसा का शिकार हुआ करती थी। लेकिन, आज के समय में पुरुष भी इस समस्या से प्रताड़ित किए जाते हैं।

आपने यह लाइन तो सुनी ही होगी ‘पत्नी से पीटने वाला मर्द’, यह लाइन आज कल आम हो गई है। यहाँ, पुरुष ही पुरुष का मज़ाक उड़ाता है।

2017 में एक न्यूज़ आयी थी, लिखा था – भारतीय कोर्ट का कहना है कि भारतीय पुरुषों को महिलाओं द्वारा झूठे घरेलु हिंसा के केसों से सुरक्षा चाहिए।

देश में पुरुषों के लिए ‘Men Cells’ भी चलाई जाती हैं। यह टी सभी जानते हैं कि पुरुषों के लिए ऐसा कोई भी लॉ नहीं है जो पुरुषों को महिलाओं द्वारा किए जा रहे उत्पीड़न से बचाया जाए। देश में जो भी लॉ हैं, वो सिर्फ महिलाओं के हित में ही हैं। कोर्ट और समाज भी सिर्फ महिला पक्ष को ही सबसे आगे रखता है। यहाँ पर सिर्फ ‘बेचारी महिला’ ही है, न की ‘बेचारा पुरुष’.

देश में हज़ारों ऐसे पुरुषों और उनके परिवारों पर केस चल रहे हैं, जो झूठे दहेज़ केस में उलझे जाते हैं। यहाँ महिला को उच्च स्तर पर रखा जाता है और पुरुषों को जूती की नौंक पर। हमारे देश में अब यह एक प्रथा सी बनती जा रही है कि महिला अपने पति पर झूठे-झूठे आरोप लगाती हैं, उनपर अपनी मन-मर्ज़ी और हुकुम चलाती हैं , और पुरुष के पास सिर्फ लाचार बन वो काम करने पड़ते हैं।

#mentoo

माँ-बाप को अपने बेटे से अलग रहना पड़ता है, क्योंकि उनकी ‘बहु’ छोटा परिवार के सपने देख रही है। फेमिनिज्म के नाम पर अब खेल खेला जाता है। लेकिन, क्या हर समय ‘फेमिनिस्ट’ कहलाना सही होगा? क्या हर जगह अपने नाम के इस तरह से झंडे गाड़ना, सेल्फ-कॉन्फिडेंस या सेल्फ सप्पोर्ट कहलाता है ?

पुरुषों के खिलाफ हो रहे अत्याचार का कोई इलाज़ नहीं है। न ही कोई समाधान है। यहाँ, एक दिन के लिए अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया जाता तो है, लेकिन पुरुषों को मिलने वाला हक़ और सम्मान किसी कोने में छुप कर बैठा है। #MeeToo ने तो मानों पुरुष वर्ग की जान ही ले ली हो। घर, स्कूल, कॉलेज, दफ्तर, काफी जगह यह झूठे केस पुरुषों के सम्मान को गिरा रहे हैं।

अपने खिलाफ हो रहे झूठे जुर्म को लगता देख जब पुरुषों ने आवाज़ उठाई तो उनकी आवाज़ दबा दी गयी।

अगर आप गूगल पर ‘situation of men in india’ लिखेंगे तो, गूगल खुद आपको ‘situation of women in india’ दिखाता है। क्योंकि देश में पुरुषों के लिए कोई बात करता ही नहीं है। देश ने महिलाओं को सम्मान दिया है, और देना भी चाहिए लेकिन क्या हम इस सम्मान का हक़दार पुरुषों को भी नहीं दे सकते?

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अगर महिला और पुरुष को एक समान समझा जाए तो सब कुछ पहले जैसा हो सकता है। महिला-पुरुष को एक स्तर पर रखा जाए तो जीवन सफल है।