मायावती ने तोड़ा सपा के साथ गठबंधन, कहा- अब बसपा अपने दम पर लड़ेगी चुनाव !

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जैसा की हम सब जानते है बीते लोकसभा चुनाव के पहले पीएम मोदी या फिर यूँ कहे बीजेपी को हराने के लिए पूरी विपक्षी पार्टी एकजुट हो कर गठबंधन का निर्माण किया था. लेकिन पीएम मोदी की लहर के सामने यह सब पूरी तरह से फ़ैल हो गया और गठबंधन पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. इसी बीच बसपा प्रमुख मायावती ने गठबंधन को लेकर बड़ा ऐलान किया है. तो चलिए जानते है आखिर पूरा मामला क्या है.

मायावती का बड़ा ऐलान

बीते 5 महीने के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया है. इस ऐलान के बाद जहाँ राजनितिक गलियारों में हाहाकार मचा हुआ है, वहीं बीजेपी पार्टी में ख़ुशी की लहर दौर पड़ी है. आपको बता दे कि मायावती ने गठबंधन तोड़ने का ऐलान करते हुए कहा कि अखिलेश यादव अपनी पार्टी की भीतर की हालात सुधारने की जरुरत है. इस ऐलान के बाद यह साफ़ हो गया कि उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में 11 सीटों पर बसपा अपने दम पर चुनाव लड़ेंगी.

यादवों के वोट ने हराया

मायावती ने अखिलेश यादव पर निशाना साधते हुए कहा कि लोकसभा चुनाव में सपा का बेस यानी यादवों के वोट न मिलने की वजह से हार का सामना करना पड़ा. यह हार पार्टी के लिए बेहद चिंता का विषय है. आपको बता दे कि पदाधिकारियों और सांसदों के साथ हुई बैठक में मायावती ने कहा था कि सपा से गठबंधन का फायदा नहीं मिला. इसके साथ ही गठबंधन के चुनाव हारने के बाद अखिलेश ने मुझे फोन नहीं किया. याद दिला दे कि बीते 12 जनवरी को सपा और बसपा ने साथ मिलकर गठबंधन में लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया था.

गठजोड़ का रिश्ता टुटा

सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव और उनकी धर्मपत्नी डिंपल यादव की प्रशंसा करते हुए मायावती ने कहा कि ”जब से सपा-बसपा गठबंधन” हुआ तब से इनलोगों ने मुझे काफी सम्मान दिया. राष्ट्रहित के लिए मैंने भी सारे मतभेद भुलाकर उन्हें सम्मान दिया. इस गठबंधन के टूट जाने के बाद मायावती के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि वो अपर कास्ट यानी ब्राह्मण, क्षत्रिय, जो पूरी तरह से बीजेपी के साथ जुड़ चुके हैंउन्हें कैसे खुश कर पायेंगी. हालांकि अब तक बीएसपी कोई भी उपचुनाव नहीं लड़ती थी, लेकिन गठबंधन टूटते साथ ही मायावती ने यूपी में होने वाले विधानसभा उपचुनाव में 11 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी.

जाति का कार्ड खेलना आसान नहीं

लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिली जीत से एक बात साफ़ हो गया है कई जातीय कार्ड खेलकर चुनाव जीतना उतना आसान नहीं रह गया है, जितना पहले हुआ करता था. बीते कुछ सालों में बीजेपी ने उन जातियों को पर्याप्त मान और सम्मान दिया है, जो पहले सपा और बसपा के समय उन जातियो को सम्मान नहीं मिल पाता था.