माँ स्कंदमाता – देवी दुर्गा का पांचवा रूप है प्रेम और वात्सल्य का प्रतीक

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1894
माँ स्कंदमाता

माँ स्कंदमाता- देवी दुर्गा का पांचवा रूप। आज शारदीय नवरात्र का पांचवा दिन है। और इस दिन माँ स्कंदमाता की पूजा अर्चना की जाती है। माँ स्कंदमाता की मूर्ति प्रेम और वात्सल्य का प्रतीक है। माँ को “स्कंदमाता” नाम देने के पीछे भी एक वजह बताई गई है। माँ को यह नाम शिव पुत्र कार्तिकेय के जन्म के बाद दिया गया। कहते हैं, जिन लोगों को संतान प्राप्ति का सुख नहीं मिल पाता, उन्हें देवी के पांचवें रूप यानी माँ स्कन्दमाता की पूजा करनी चाहिए। माँ आदिशक्ति का यह रूप संतान प्राप्ति के लिए की गई हर मनोकामना पूरी करती हैं। मान्यता है कि, माँ स्कन्दमाता के पूजन में कुमार कार्तिकेय का होना जरूरी है।

माँ के पांचवे रूप की चार भुजाएं हैं। माँ ने अपनी दाएं तरफ की ऊपर वाली भुजा से कुमार कार्तिकेय को गोद में किया हुआ है। इसी तरफ, निचली भुजा के हाथ में कमल का फूल है। बाई तरफ की ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा है और नीचे दूसरा श्वेत कमल का फूल है। इनका वाहन सिंह है, क्योंकि यह सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। इसलिए इनके चारों ओर सूर्य सदृश आलोकिक तेजोमय मंडल से दिखाई पड़ता है। हमेशा कमल के आसन पर बैठीं रहने के कारण माँ का पदमासना भी कहा जाता है।

बाईं ओर की ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा है और नीचे दूसरा श्वेत कमल का फूल है। सिंह इनका वाहन है, क्योंकि यह सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं इसलिये इनके चारों ओर सूर्य सदृश अलौकिक तेजोमय मंडल सा दिखाई देता है। सर्वदा कमल के आसन पर स्थित रहने के कारण इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है।

बाईं ओर की ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा है और नीचे दूसरा श्वेत कमल का फूल है। सिंह इनका वाहन है, क्योंकि यह सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं इसलिये इनके चारों ओर सूर्य सदृश अलौकिक तेजोमय मंडल सा दिखाई देता है। सर्वदा कमल के आसन पर स्थित रहने के कारण इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है।

माँ को पूजन में धनुष बाण अर्पित किया जाता है। माँ स्कंदमाता को सुहाग का सामान भी अर्पित किया जाता है। उनकी पूजा भी देवी दुर्गा के अन्य स्वरूपों की तरह ही होती है।

माँ स्कंदमाता का मन्त्र है – सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥ अथवा या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

माँ स्कंदमाता की कथा –

शास्त्रों में यह माना गया है कि कुमार कार्तिकेय सभी देवताओं के कुमार सेनापति हैं। पुराणों में कार्तिकेय को स्कन्द कुमार या सनत कुमार आदि के नामों से भी जाना जाता है। कहते हैं, माँ स्कंदमाता के रूप में शेर पर सवार होकर अत्याचारी दानवों का संहार करती हैं। पर्वतराज की बेटी होने के कारण इन्हें पार्वती नाम भी दिया गया। भगवान शिव की बेटी होने के कारण उन्हें माहेश्वरी नाम भी दिया गया। माँ के गौर वर्ण के कारण उन्हें गौरी नाम भी दिया गया। माँ को पुत्र से काफी प्रेम है तो उन्हें स्कंदमाता भी कहा जाता है।