वन संरक्षण ही है अब स्वस्थ साँसों का एकमात्र उपाए, पेड़ लगायें और इन्हें काटने से बचाएं

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वन संरक्षण

वन संरक्षण – माना जाए तो धरती पर 31 प्रतिशत वन(जंगल) है। और इन वनों में है इंसान का जीवन। बचपन में पढ़ा था कि वन है तो जीवन है। क्योंकि इन वनों में रहने वाले पेड़ पौधे हमें ऑक्सीजन देते हैं। इसे और आसानी से समझें तो यह पेड़ हमें साँसे देते हैं।

वन संरक्षण के लिए, साल 2015 में भारतीय सरकार द्वारा लगाए गए अनुमान को पढ़ें तो यह सामने आता है कि भारत में पेड़ और जंगल अब एक प्रतिशत यानी 8,021 स्क्वायर किलो मीटर तक फ़ैल चुके हैं। अभी हाल ही में अंग्रेजी वेबसाइट Huffpost, में भी यह बात सामने आयी कि भारतीय क्षेत्र लखनऊ में लोगों ने एक ही दिन में 220 मिलियन पेड़ लगाए हैं। यह तो लगता ही है कि हम इंडियंस ने यह प्लेज ले ली है कि अपने देश के एक-तिहाई हिस्से को हरा भरा बना कर रखेंगे। लेकिन बढ़ती जनसँख्या और औद्योगिकीकरण इसके लिए मुश्किल बनता जा रहा है।

क्लाइमेट चेंज – बदल रही है धरती लेकिन बुरी तरह

क्लाइमेट चेंज की बात करें। तो आज के समय में यह ऐसा विषय बन चूका है जो सभी की ज़िन्दगी के लिए निर्भर करता है।

क्लाइमेट चेंज की बात करें। तो आज के समय में यह ऐसा विषय बन चूका है जो सभी की ज़िन्दगी के लिए निर्भर करता है। वातावरण में बदलाव लाने के बचाव में एक ही सुझाव नज़र आता है – पेड़ लगाओ। वन संरक्षण के साथ देश में पर्यावरण को बचाने के लिए अलग अलग जगह जागरूकता अभियान लगाए जा रहे हैं। आपने भी कहीं न कहीं आज भी किसी एनजीओ को पेड़ लगाते हुए देखा ही होगा। स्कूलों में बच्चों को पर्यावरण की सीख देने के लिए ऐसे कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। जहाँ बच्चे यह सीख सकें कि पर्यावरण क्या है?, और इसे संरक्षित बनाना कितना जरुरी है।

वन संरक्षण के लिए, जोधपुर में एक 75 साल के बुज़ुर्ग व्यक्ति, वहाँ के लोगों के लिए एक मिसाल बन चुके हैं। इन बुज़ुर्ग का नाम है, रणाराम बिश्नोई, जिन्होंने पचास सालों में 27 हज़ार पेड़ लगाए हैं। उनके इस काम को प्रेरणा का रूप देते हुए एक आईएफएस अधिकारी ने ट्वीट भी किया था।

वायु प्रदुषण भी है खतरे के निशान के बेहद करीब

अच्छा चलिए, पर्यावरण को बचाने के लिए एक और बेहतरीन व्यक्ति के बारे में बताते हैं। क्या आप जानते हैं सोनम वांगचुक को। नहीं, अरे वही जिनके ऊपर आमिर खान की बड़ी अच्छी फिल्म बनी थी। हाँ, थ्री इडियट्स। आमिर खान ने जिस व्यक्ति का रोल निभाया था वही व्यक्ति हैं यह।

अभी कुछ ही दिनों पहले सोनम वांगचुक ख़बरों में आए थे, उन्होंने यह दवा किया है कि वायु प्रदुषण से दुनिया में हर साल साल से दस मिलियन लोग मर रह हैं, जबकि दोनों वर्ल्ड वॉर के दौरान हर साल लगभग दस मिलियन लोग मौत के घात उतारे गए थे।

अभी कुछ ही दिनों पहले सोनम वांगचुक ख़बरों में आए थे, उन्होंने यह दवा किया है कि वायु प्रदुषण से दुनिया में हर साल सात से दस मिलियन लोग मर रह हैं, जबकि दोनों वर्ल्ड वॉर के दौरान हर साल लगभग दस मिलियन लोग मौत के घात उतारे गए थे। जलवायु परिवर्तन के खिलाफ, इस रेमन मैग्सेसे अवार्ड विजेता सोनम वांगचुक ने एक नयी मुहीम छेड़ दी है, इस मुहीम का नाम है “#Ilivesimply movement”

आरे के जंगल

आरे के जंगलों के बारे में सुना है क्या। हाँ, मुंबई में बसी वही आरे कॉलोनी जो कि अभी चर्चा में है। इस आरे कॉलोनी के अंदर 27 छोटे-छोटे गांव हैं और यहाँ सदियों से तक़रीबन आठ हज़ार आदिवासी लोग रहते हैं। कई लोग इस इलाके को इसीलिए नहीं छोड़ना चाहते क्योंकि यहाँ के पेड़ पौधे उन्हें हरियाली देते हैं। लेकिन इस इलाकों में कुछ दिनों से कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है।

असल में हुआ यूँ कि मुंबई मेट्रो ने इन पेड़ों को काटना शुरू कर दिया। कहा जा रहा है कि इस इलाके में मेट्रो के लिए कार शेड बनाया जाएगा इसके लिए 2185 पेड़ काटे जाएंगे। फिर क्या था, लाखों लोग सड़कों पर धरना प्रदर्शन के लिए निकल आये। उन्हें संभालने के लिए पुलिस प्रशासन ने भी तेज़ी से काम करना शुरू कर दिया था। धारा-144 लगाईं गयी। पचास से अधिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन लोगों का गुस्सा शांत नहीं होने वाला था। मुंबई की हाई कोर्ट में कई याचिकाएं डाली गईं लेकिन उन्होंने इस इलाके को जंगल मानने से साफ इंकार कर दिया।

फिर कुछ छात्रों की एक टीम ने सुप्रीम कोर्ट के सामने अपनी बात रखी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल के लिए पेड़ काटने का काम रोक दिया है। वहीं, देश में सत्ता चला रही भारतीय जनता पार्टी का यह कहना है कि वह इससे दोगुने पेड़ लगाएगी। लेकिन कहाँ ? इसका जवाब नहीं आया।

विकास के नाम पर हमारे देश में आपको लंबी सड़कें, ऊँची इमारतें और बढ़िया घर दिखाई दे जाएंगे लेकिन हरियाली के नाम पर सरकार कुछ काम नहीं करती। यह बात तो आरे के जंगल वाली घटना से साफ़ पता चल गया। यह तो सभी जानते हैं की पेड़ और पानी बिना जीवन अधूरा है। आज के समय में सूरज की तपिश इतनी ज़्यादा है कि मौसम का हिसाब लगाना ही व्यर्थ है। देश, जल और वायु प्रदुषण से बुरी तरह जूझ रहा है। जिसके बारे में सरकार प्रोग्राम या कोई अभियान तो छेड़ देती है। और कुछ दिनों तक यह अभियान मीडिया में पुरे जोर-शोर से चलाया जाता है। और हो भी क्यों न, क्योंकि देश के नामचीन लोग इसके भागीदार हैं। लेकिन क्या हमें इन भागीदारों की सच में जरुरत है। क्या हम खुद से एक यह संकल्प नहीं ले सकते कि पेड़ लगाएंगे, काटने से बचाएंगे? क्या गाड़ियों के धुंए को ही ऑक्सीजन समझ कर सांस लेने से हम जीवित रहेंगे? और जीवित रहे भी तो कितने साल? अब यह जानना तो हमें ही होगा की जीवन या मृत्यु।

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