Ram Mandir Vivaad – ‘Ram’ नाम का शोर सुनाई देगा जग में

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Ram Mandir Vivaad – रामचंद्र कह गए सीया से ऐसा कलयुग आएगा,………. सदियों से हमने रामचंद्र जी की कहानी सुनी है। बचपन में दादी-नानी से फिर बड़े हुए तो रामलीलाओं का मंचन। और अगर वक़्त के साथ एडवांस हुए तो टीवी पर आने वाली कोई फिल्म या सीरियल। राम जी के जन्म से लेकर लव-कुश के आगमन तक, सारी रामकथा मुंहजुबानी याद है। रामायण के सभी पात्रों को हमने भली भाँती जाना है।

टेक्नोलॉजी वाले युग में राम जी को थ्री-डी स्क्रीन में देखा होगा। और उनके ऊपर लिखी किताबें भी पढ़ी हैं। इन दिनों राम नाम काफी चर्चा में है। क्यों? क्योंकि राम जी जन्म स्थल को अब उसका मूलरूप से अधिकार बनने वाला है। असल में यह विवाद है, राम मंदिर और बाबरी मस्जिद का। आइए, आपको बताते हैं इस विवाद के बारे में –

Ram Mandir Vivaad – कई सालों पहले, साल 1528 में मुग़ल सल्तनत के शासक बाबर ने बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया था। इतिहासकारों की मानें तो जिस स्थान पर बाबर ने मस्जिद बनवाया वह स्थान हिन्दुओं के भगवान श्रीराम की जन्मस्थली है। जब तक देश में मुगलों का शासन रहा तब तक तो इस बात पर कोई विवाद नहीं हुआ लेकिन, साल 1853 में पहली बार इस जगह के पास सांप्रदायिक दंगा हुआ। उस दौर यानी साल 1859 में मुगलों की जगह अंग्रेजी सल्तनत का राज था। उस समय भी हिन्दू पक्ष के लोग यहाँ मस्जिद तोड़कर मंदिर बनवाना चाहते थे। तब तो अंग्रेज सरकार ने एक सुझाव ढूँढा, विवादित स्थल पर बाड़ लगा दी गई। बाबरी मस्जिद के भीतरी हिस्से में मुसलामानों को नमाज़ पढ़ने की और बाहरी हिस्से में हिन्दुओं को पूजा-प्राथना करने की अनुमति दी गयी।

Ram Mandir Vivaad – साल 1949 में, भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाईं गई। कथित रूप से कहा जाता है कि हिन्दुओं ने यह मूर्तियां रखवाई थीं। इस बात पर मुस्लिम पक्ष ने अपना विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया था। और यह विरोध इस कदर बढ़ा की यह अदालत में ले जाया गया। अदालत ने इस स्थल को विवादित स्थल करार देकर इस जगह ताले लगा दिए। फिर क्या था, तभी से विवादित स्थल पर दावेदारी का सिलसिला शुरू हुआ। और आज तक यह मुद्दा देश का सबसे बड़ा मुद्दा बन चूका है। क्योंकि हर किसी के पास यह सवाल है कि ‘ राम मंदिर कब बनेगा ?’

फिर साल 16 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशारद ने फैज़ाबाद अदालत में अपील दायर करके रामलला की पूजा-अर्चना करने की विशेष इज़ाज़त मांगी थी। फिर साल के अंत में 5 दिसम्बर को परमहंस रामचंद्र दास ने हिन्दू प्राथनाएं जारी रखने और बाबरी मस्जिद में राममूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर किया। और मस्जिद को ढांचा कह दिया गया। फिर साल 1959 की 17 दिसंबर को निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल को हस्तांतरित करने के लिए मुकदमा डाला गया। फिर दो साल बाद, 18 दिसंबर 1961 को उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने ढांचे के मालिकाना हक़ के लिए मुकदमा दर्ज किया। साल 1984 हिन्दू परिषद् ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और रामचंद्र के जन्मस्थल को पूर्ण रूप से स्वतंत्र कराने और एक विशाल भव्य मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया। इसके लिए एक समिति भी बनाई गई।

Ram Mandir Vivaad – साल 1886 में फैज़ाबाद के जिला न्यायधीश ने विवादित स्थल पर हिन्दुओं को पूजा करने की मंजूरी दे दी थी। ताले दुबारा खोले गए। मुस्लिम पक्ष इस बात पर नाराज़ था और उन्होंने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी बनाई। जून 1989 को भारतीय जनता पार्टी ने विश्व हिन्दू परिषद् का अनौपचारिक समर्थन शुरू कर दिया। जिससे कि मंदिर आंदोलन को नया जीवन दिया जा सके। फिर अगले महीने जुलाई को भगवान रामलला विराजमान नाम से पांचवा मुकदमा दाखिल किया गया। उसी साल नवंबर में उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की सरकार ने बाबरी मस्जिद के नज़दीक शिलान्यास की इज़ाज़त दी थी। सितंबर 1990 को भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा शुरू की, इस दौरान सांप्रदायिक दंगे भी हुए।

Ram Mandir Vivaad -अगले महीने नवंबर 1990 को लाल कृष्ण आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर जिले में गिरफ्तार कर लिया गए।भाजपा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वी. पी. सिंह की सरकार ने समर्थन वापस ले लिया था। अक्टूबर 1991 को उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार ने बाबरी मस्जिद के आस-पास की करीब 2.77 एकड़ की ज़मीन को अपने अधिकार में ले लिया था। दिसम्बर 1992 को हज़ारों की संख्या की भीड़ में कारसेवक अयोध्या पहुंचे। और उन्होंने उस बाबरी मस्जिद के ढांचे को ढहा दिया है। इसके बाद सांप्रदायिक दंगे हुए थे। फिर क्या था, जल्दबाज़ी में एक अस्थायी मंदिर का रूप दिया गया।

साल 1992 की 16 दिसम्बर को मंदिर की तोड़-फोड़ के जांच-पड़ताल के लिए लिब्राहन आयोग का गठन किया गया। जनवरी 2002 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने ऑफिस में एक अयोध्या विभाग शुरू किया। इस विभाग का काम इस भूमि विवाद को सुलझाने के लिए हिन्दू-मुस्लिम दोनों पक्ष से बातचीत काने के लिए किया गया था। 2002 के अप्रैल में, अयोध्या की विवादित भूमि को उसका मालिकाना हक़ दिलाने को लेकर हाई कोर्ट के तीनों जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की। अगले साल 2003 को इलाहबाद की हाई कोर्ट के निर्देशों पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई शुरू की। इस विभाग ने दावा किया था कि मस्जिद के निचे मंदिर के कुछ अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं। और वहीं, मुस्लिमों में इसे लेकर अलग-अलग मत थे।

सितम्बर 2003 में एक अदालत ने फैसला दिया था कि मस्जिद के विध्वंस को उकसाने वाले सात हिन्दु नेताओं को सुनवाई के लिए बुलाया गया। साल 2009 में लिब्राहन आयोग ने गठन के सत्रह साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को रिपोर्ट भेजी थी। सितंबर 28, 2010 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका करते हुए फैसले का मार्ग प्रशस्त किया गया। ठीक दो दिन बाद, इलाहबाद सुप्रीम कोर्ट ने विवादित ज़मीन को तीन हिस्सों में बांटा गया, जिसमें राम मंदिर, सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाडा को देने की बात रखी गई। 2011, 9 मई को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले पर रोक लगा दी गई।

Ram Mandir Vivaad – जुलाई 2016 को बाबरी मस्जिद मामले में सबसे उम्रदराज़ व्यक्ति वादी हाशिम का निधन हो गया था। 21 मार्च 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित भाजपा और आरएसएस के काफी नेताओं के खिलाफ आपराधिक केस चलाने का आदेश भेज दिया गया था। फिर 2019 की 6 अगस्त तारीख को मामले में मध्यस्थता से कोई नतीजा नहीं निकल पाया था। इसके बाद से रोज़ाना इस मामले की सुनवाई होने लगी।

वहीं, आज यानी 16 अक्टूबर को यह सामने आया कि आज इस मामले की अंतिम सुनवाई है। अब इस मामले का निर्णय ठीक एक महीने बाद यानी 17 नवंबर को इसका महत्पूर्ण फैसला सामने आएगा। अब देखना यह होगा की गाज किसकी और किसपर गिरेगी।