Janmasthmi Special : महाभारत में युद्ध में सारथी बनें श्रीकृष्ण ने जब दिए थे अर्जुन को वो उपदेश, जानिए क्या हैं यह उपदेश

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यदा यदा ही धर्मस्य, ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानम धर्मस्य, तदात्मनं सृजाम्यहम।। – हे अर्जुन जब जब धर्म की हानि होगी, मैं तब तब धरती पर प्रकट होंगा।

महाभारत का वो युद्ध याद तो होगा। वही युद्ध जो की कौरवों और पांडवों के बीच में हुआ था। जब अर्जुन युद्ध मैदान में आये तो उनके सामने थी कौरवों की सेना। इस युद्ध में अर्जुन के सामने उनके गुरु और उनके रिश्तेदार थे। इसे देख वो असमंजस में आ गए। अर्जुन ने श्री कृष्ण से कहा की वह यह युद्ध नहीं लड़ सकते। अर्जुन के मन में बार बार यही बात आ रही थी कि वो कैसे अपने गुरु से युद्ध कर सकते हैं ? अर्जुन की परेशानी देख उनके सारथी बने भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें कुछ उपदेश दिए थे। इन उपदेशों को गीता के उपदेश भी कहा जाता है।

श्रीमदभागवत गीता में दिए गए उपदेशों को यदि कोई अपने जीवन में अपना ले तो वह दुनिया के लिए भी अच्छे कर्म करेगा। कहते हैं जिस समय भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश दे रहे थे, उस समय विश्व के चार लोग भी इसे सुन रहे थे। वो थे राम दूत हनुमान, महर्षि व्यास के शिष्य और धृतराष्ट्र की राज्यसभा के सदस्य संजय और बबरीक। पढ़िए, वो उपदेश जिन्हें हर व्यक्ति को अपनाना चाहिए।

  • जो लोग अपने मन को नियंत्रित नहीं कर सकते, तो उनका मन एक शत्रु की तरह काम करने लगता है। मनुष्य को अपने मन पर नियंत्रण बनाए रखना चाहिए। वरना जीवन में कई सारी मुश्किलें पैदा हो जाती हैं।
  • जीवन में किसी भी काम को करने से पहले अपना आकलन कर लेना चाहिए। साथ ही किसी भी काम को करने के लिए अनुशासन बहुत जरुरी है। बिन अनुशासन सब व्यर्थ है।
  • जीवन में खुद पर विश्वास करना चाहिए। व्यक्ति स्वयं के विश्वास से ही बनता है। जो जैसा कर्म करता है, वह वैसा ही फल पाता है।
  • हर कार्य को करने से पहले उसका अभ्यास कर लेना चाहिए। यदि मन अशांत है तो लगातार अभ्यास से उसे शांत किया जा सकता है।
  • गुस्से में कोई भी फैसला नहीं लेना चाहिए। क्रोध आने के वक़्त हमारा दिमाग सही और गलत में फर्क नहीं समझ सकता। जिसके कारण हम कई गलत फैसले ले लेते है।
  • जीवन में किसी भी चीज़ की अधिकता नुक्सानदेही है। जीवन में हर चीज़ में समानता होनी चाहिए। रिश्तों में अधिक प्रेम या कड़वाहट गलत है।

गीता में दो मुख्य चरित्र हैं। एक अर्जुन और एक दुर्योधन। अर्जुन बेहद संवेदनशील, करुणामयी और ममता से पूर्ण हैं तो वही दुर्योधन लोभी, लालची और अहंकारी हैं। दुर्योधन के तमस से भरे हुए हैं और अर्जुन प्रकाश से भरे हुए. अर्जुन के इसी रूप को देख भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें उपदेश दिए थे।

माना जाता है कि हिन्दू धर्म में यह पहला ऐसा धर्मग्रंथ है जिसे भगवान ने स्वयं अपने मुख से बोला है। गीता में 18 अध्याय और 700 से अधिक श्लोक हैं।