“काव्योत्सव” जैसी चौपालें ही जिंदा रखेंगी समाज को: डॉ. मिथिलेश

0
470
काव्योत्सव

गाजियाबाद। विख्यात कवि और समीक्षक डॉ. मिथिलेश श्रीवास्तव ने कहा कि ग्रामीण परिवेश में साहित्य और कला अलग से नहीं आती। ग्रामीण जीवन में यह इंटर ओविन है। शाम की चौपाल जीवन का हिस्सा है। अमर भारतीय साहित्य संस्कृति संस्थान के “काव्योत्सव” के अध्यक्ष डॉ. मिथिलेश श्रीवास्तव ने कहा कि महानगरों में साहित्य और कला का लोप हो गया है। काव्योत्सव जैसी चौपाल ही न सिर्फ कला और साहित्य को जिंदा रखे हैं बल्कि इसका पोषण भी कर रही हैं। उन्होंने कहा कि साहित्य हमारे अभावों को भरता है, यदि मैं काव्योत्सव में न आता तो विलक्षण अनुभव के संसार से वंचित ही रहता। डॉ. श्रीवास्तव ने कहा कि इस मंच से उन्हें इंपैक्टफुल रचनाएं सुनने को मिलीं।

ग़ाज़ियाबाद, नेहरू नगर स्थित सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में आयोजित काव्य उत्सव में डॉ. श्रीवास्तव ने कहा कि यहां हमने अपने समाज की खबर, अधिकांश बुरी खबरें साझा की हैं। हम सब बोलना चाहते हैं लेकिन हमारे पास कोई प्लेटफार्म नहीं है। सोशल मीडिया जैसे जो प्लेटफार्म बचे भी हैं उन पर भी निगरानी की तैयारी है। हम एक डरे हुए समाज का हिस्सा बन रहे हैं। अभिव्यक्ति के लिए कुछ बचेगा तो इस तरह की गोष्ठियां ही बचेंगी। ” छिपकली ” कविता के माध्यम से उन्होंने देश, दुनिया के हालात बयान करते हुए कहा ” यह घर मेरा है… लेकिन जिस बेखौफ से छिपकली दीवारों पर दौड़ती है, यह घर उसका भी है,… मेरे डर को देखकर उसे खुशी मिलती होगी… एक डरे हुए मनुष्य को देख कर छिपकली खुश कैसे हो सकती है, जबकि दोनों को एक साथ एक ही घर में रहना है… मेरे मन में कई बार ख्याल आया कि उसे मार भगाऊं, फिर सोचा मेरा घर उसका देश है वह कहां जाएगी, एक जाना पहचाना देश छोड़कर वह कौन से अनजाने मुल्क में जाएगी, एक जगह से उजड़ा हुआ दूसरी जगह बस ही कहां पाता है…”।

संगीतम पं. हरि दत्त शर्मा “अमर भारती प्रतिभा सम्मान” से सम्मानित

” अमर भारती प्रतिभा सम्मान ” प्राप्त करते हुए जाने-माने संगीतज्ञ पं. हरिदत्त शर्मा ने कहा कि साहित्य और संगीत का नाता अटूट है। श्री शर्मा ने कहा कि जो प्रोफेशनल लोग किसी भी लोक विधा में रुचि रखते हैं उनके कार्य के नतीजे विशेष व उत्तम निकलते हैं। संस्था के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. धनंजय सिंह ने अपने गीत की पंक्तियों ” रहा विसंगतियों से लड़ता, जीता या हारा, नहीं बहाई किंतु दीन हो आंसुओं की धारा…” पर खूब वाहवाही बटोरी। अध्यक्ष गोविंद गुलशन ने चिरागों को केंद्र में रख ढेरों शेर सुनाए। उन्होंने कहा “सुबह होती है तो फूलों से लिपट जाती है धूप, शाम होते ही चिरागों में उतर जाती है धूप।” शायर सुरेंद्र सिंघल ने भी अपने शेरों “गुजरे है जब पानी सर से ऊपर, तब कुछ कहवे है, वर्ना तो मुझ में यह शायर रोज बहुत कुछ सहवे है, खतरे वाले चिह्न से ऊपर पानी चढ़ आया है देख, सोचेगा क्यों है यह किसका गांव शहर जो बहवे है, रोए हैं एक गांव शहर में तन्हा जब बरसात, गिरती दीवारों की चिट्ठी लेकर आए है” पर खूब दाद बटोरी। वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. बृजपाल त्यागी ने कहा कि काव्योत्सव जैसे आयोजन तनाव मुक्ति का सर्वोत्तम माध्यम हैं। चीन में हिंदी विशेषज्ञ डॉ. नवीन चंद्र लोहनी ने कहा कि अमर भारती साहित्य संस्कृति संस्था साहित्य को ही नहीं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के साहित्य प्रेमियों को भी समृद्ध कर रही है। मासूम गाजियाबादी ने कहा “न दरबानों को नींद आई, न सुल्तानों को नींद आई, सुकूं से आई तो बस पाकदामनों को नींद आई।”

कार्यक्रम में दिवंगत आत्माओं कवि चेतन आनंद की माताश्री एवं श्री पवन चिब को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। कार्यक्रम का संचालन इंदू कौशिक ने किया। तरुणा मिश्रा, आलोक यात्री, प्रवीण कुमार, बी.एल. बत्रा अमित्र, इंद्रजीत सुकुमार, कल्पना कौशिक, खुशबू सक्सैना, राजपाल त्यागी, हेम लता वशिष्ठ, डॉ. पुष्पक्षलता, सुशील शैली, सोनम यादव, प्रेम शर्मा प्रेम, उमाकांत दीक्षित, आशीष मित्तल, सुरेश मेहरा, निवेदिता शर्मा, मंजू कौशिक, इरा सालवान आदि की रचनाएं भी सराही गईं। इस अवसर पर शिवराज सिंह, सुशील शर्मा, कुलदीप, सुरेश अखिल, दिनेश दत्त शर्मा, प्रशांत वत्स आदि सहित बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद थे।