Navratra Vishesh :- नवरात्र के पहले दिन शैलराज हिमालय की पुत्री “माँ शैलपुत्री” का पूजन किया जाएगा

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Navratra 2019 – रविवार से शारदीय नवरात्र शुरू हो रहे हैं। इसके लिए सभी मंदिरों को सजा दिया गया है। बाज़ारों में भी सजावट देखने को मिल रही है। सभी लोग माँ के स्वागत के लिए पलकें बिछाए बैठे हैं। इस बार शारदीय नवरात्र 29 सितंबर से 7 अक्टूबर तक चलेंगे। और 8 अक्टूबर को विजय दशमी का विशेष पर्व मनाया जाएगा।

कहा जा रहा है कि इस शारदीय नवरात्र के नौ दिन में नौ अद्भुत और मंगलकारी संयोग मिलेंगे। अर्थात – दो दिन अमृत सिद्धि, दो दिन सेवार्थ सिद्धि व दो दिन रवि योग। इसके साथ दो सोमवार को शिव-शक्ति की कृपया भी मिलेगी। देवी माँ ने आश्विन नवरात्र को अपनी वार्षिक पूजन कहा है। माँ भगवती कहती हैं – यह पूजा मुझे अत्यंत प्रिय है क्योंकि इन दिनों मैं अपना वचन पूरा करते हुए सृष्टि लोक में आती हूँ। इसके साथ इस बार शारदीय नवरात्र में घट स्थापना का शुभ समय सुबह 6 बजे से बताया जा रहा है।

नवरात्र का पहला दिन ‘माँ शैलपुत्री’ के नाम

रविवार 29 सितंबर को माँ का पहला Navratra है। पहले नवरात्रे वाले दिन माँ शैलपुत्री का पूजन किया जाता है। कथाओं के अनुसार, शैलराज हिमालय की पुत्री होने के कारण माँ का नाम शैलपुत्री रखा गया। माँ को वृषारूढ़ा भी कहा जाता है क्योंकि उनका वाहन बैल है। माँ शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाहिने हाथ में कमल का फूल होता है।

वन्दे वान्‍छित लाभाय चन्द्र अर्धकृत शेखराम्।

वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥

कहते हैं, Navratra के पहले दिन माँ शैलपुत्री का पूजन करने और उनका मंत्र का जाप करने से व्यक्ति का मूलाधार चक्र जाग्रत होता है। माँ शैलपुत्री के मंत्र का जाप कम से कम ग्यारह बार करने से धन-धान्य, ऐश्वर्य और सौभाग्य में वृद्धि होती है। और साधक को आरोग्य और मोक्ष का वरदान भी मिलता है।

इस दिन प्रातः समय स्नान-आदि करके लाल वस्त्र धारण किया जाता है। इस दिन माँ शैलपुत्री को लाल फल और लाल फूल अर्पित किया जाता है। माँ को ताम्बे का सिक्का भी अर्पित करते हैं। इसके साथ अपने गुरु का भी ध्यान किया जाता है।

माँ शैलपुत्री की जन्म-कथा –

दक्ष प्रजापति ने अपने घर महायज्ञ का आयोजन किया था। उस महायज्ञ में सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया। लेकिन उन्होंने अपने दामाद भगवान शिव शंकर को निमंत्रण नहीं भेजा। कहते हैं कि, दक्ष प्रजापति अपने दामाद यानी भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे। दक्ष प्रजापति की पुत्री यज्ञ की बात सुन अपने पिता के यहाँ चली जाती हैं। और भगवान शिव उन्हें वहां जाने से मना करते हैं। अपने पिता के यहाँ अपने पति का हो रहा अपमान देख दक्ष पुत्री को अतिक्रोध आता है। वह उस महायज्ञ को नष्ट कर देती हैं और स्वयं को उस यज्ञ वेदी में भस्म कर लेती हैं। अगले जन्म में उनका जन्म शैलराज हिमालय के यहाँ होता है और उनका नाम शैलपुत्री से जाना जाता है।

दक्ष प्रजापति ने अपने यहां महायज्ञ का आयोजन किया। उसमें समस्त देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन उन्होंने अपने जमाता भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा। दक्ष प्रजापति अपने दामाद भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे। पिता के यहां यज्ञ की बात सुनकर पुत्री सती वहां चली जाती हैं, भगवान शिव के मना करने के बावजूद। वहां अपने पति शिव का अपमान देखकर सती यज्ञ को नष्ट कर देती हैं और स्वयं को यज्ञ वेदी में भस्म कर लेती हैं। अगले जन्म में सती का जन्म में शैलराज हिमालय के घर होता है और सती शैलपुत्री के नाम से विख्यात होती हैं।