Bollywood Viral Gossip: कहते है, जब आप किसी भी चीज़ को दिल से अपना लो और उसकी पूजा करो तो वो चीज़ हर पल आपके दिलों दिमाग में छाई रहती है, फिर वो हमारा प्रोफेशन हो या हमारा कोई रिश्ता।
इस बात का सबूत है, साल 12 जुलाई, 2002 को रिलीज हुई वो फिल्म जिसका आईडिया फिल्म डायरेक्टर के दिमाग में तब आया था। जब उनके सामने उनके पिताजी की लाश थी।
यह फिल्म कोई और नहीं बल्कि वो फिल्म है, जो आज भी आशिक़ों के लिए सबसे पंसदीदा फिल्मों में शुमार है, जो फिल्म अपने वक़्त की सबसे महँगी फिल्म है, वो फिल्म जिसने कई सारे मशहूर स्टार्स को एक नया नाम दिया। जिस फिल्म का नाम और कॉन्सेप्ट शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के नॉवेल से ही लिया गया। यानि 12 जुलाई, 2002 को रिलीज़ हुई फिल्म ‘देवदास’।
यह फिल्म उस डायरेक्टर के निर्देशन में बनी जो अपने भव्य सेट और अनोखी कहानी के लिए जानें जाते है। जी हां, हम बात कर रहें है, मशहूर निर्देशक संजय लीला बंसाली की। जिन्होंने देवदास जैसी फिल्म का निर्माण कर फिल्म इंडस्ट्री को एक तोहफा दिया।
लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा कि वो फिल्म जिसने इतनी तारीफें बटोरी उसे बनाने का ख्याल आखिर आया कहाँ से।
शायद आपने कभी इतनी बरिखी से कभी सोचा भी ना होगा, लेकिन यह जो कहानी है, ना देवदास यह कहानी कोई काल्पनिक कहानी नहीं बल्कि संजय लीला भंसाली की ज़िंदगी की कहानी है।
Bollywood Viral Gossip: तो आइए जानें इस फिल्म से जुड़ी वो असली कहानी जिसकी वजह से फिल्म देवदास लोगों के दिलों के तार इतनी आसानी से छू सकी।
संजय लीला भंसाली यूं तो अपने कई इंटरव्यूज में बता चुके है, कि उनकी कभी भी उनके पिता से नहीं बन सकी। इसकी वजह थी उनके पिता की शराब पीने की लत।
असल में, संजय लीला भंसाली के पिता एक फिल्म प्रोड्यूसर थे, लेकिन उनकी फिल्में थियेटर में नहीं, चली फिल्में फ्लॉप रही, काफी नुकसान हुआ, जिसे वो सह नहीं पाए, और यह सदमा इतना गहरा था कि वो नशे में डूबते चले गए।
दर्द तो दर्द होता है, फिर वो मोहब्बत का हो या जिसके लिए आपने दिन रात मेहनत की हो उस काम के डूब जाने का।
संजय लीला भंसाली की इस नशे में वो इतने खो गए, कि उन्हें यह होश ही नहीं रहा कि घर का खर्चा पानी कैसे चल रहा है? बच्चों की फीस कैसे दी जा रही है? उन्हें किसी बात से कोई लेन देन नहीं था। जहाँ संजय की मां लीला ने साबुन बेचकर और कपड़े सिलकर बच्चों को पाला पोषा। वहीं एक ओर उनके पिता को लिवर सिरोसिस हो गया जिसकी वजह से वो कोमा में चले गए, और जब कोमा से बाहर आये, तो मौत ने गले लगा लिया। लेकिन जान जाने से कुछ लम्हें पहले उन्होंने संजय की मां लीला की ओर अपना हाथ बढ़ा पहली और आखिरी बार अपने प्यार का इज़हार किया था। यह वहीं पल था जिसका लीला ना जाने कितने सालों से इंतज़ार कर रही थीं। लेकिन यह वक़्त आया भी तब जब संजय की मौत उनका इंतज़ार कर रही थी। संजय बताते हैं कि उन्हें वो पल दोनों हाथों का बिछड़ना याद रहा।
वो पल काफी भावुक था लेकिन यह वो पल था जब संजय के दिमाग में इस तरह की ही किसी कहानी पर फिल्म बनाना का आईडिया आया था। तब उनके हाथ लगी शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की नॉवेल ‘देवदास’ जिसे जब उन्होंने पढ़ा तब उनके हाथ लग चुका था वो तत्त्व जिसपर उनकी अगली फिल्म निर्धारित थी।
इस फिल्म में संजय ने अपने बहुत सारे निजी अनुभव का इस्तेमाल किया था।
इस फिल्म में एक सीन है, जहां देवदास के पिता की मौत हो जाती है, और पिता के अंतिम संस्कार पर देवदास पूरी तरह नशे में चूर होके पहुँचते हैं, अपनी मां को किसी बाहर वालों की तरह तसल्ली देता है। लेकिन उस सीन के देवदास शाहरुख नहीं बल्कि भंसाली के पिता थे। दरसअल यह सीन संजय लीला भंसाली के साथ हुई एक सच्ची घटना से प्रेरित था। असल में संजय की दादी के श्राद्ध पर उनके पिता इतने नशे में थे कि वो वहाँ गिरते सँभालते पहुँचे थे।
तो यह थी वो फिल्म जिसका आईडिया डायरेक्टर संजय लीला भंसाली के दिमाग में तब आया जब उनके पिता की लाश उनके सामने थी। इतना ही नहीं यही वजह थी कि यह फिल्म संजय के काफी करीब रही और इस फिल्म का इस भावुक कहानी के जुड़े होने की वजह से फिल्म में जान आई।