महात्मा गाँधी की मौत क्या थी – राजनीति या सोची-समझी साजिश

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नाथूराम गोडसे

नाथूराम गोडसे, वह नाम जो हर किसी के दिमाग में बसा हुआ है। देश को आज़ाद कराने वाले राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गाँधी के हत्यारे, नाथूराम गोडसे। शुरु में राष्ट्रपिता का पक्का अनुयायी, और बाद में उनके ही खिलाफ होने वाला व्यक्ति। वे मान बैठे थे कि देश के विभाजन के लिए जिम्मेदार, राष्ट्रपिता ही हैं। वे यह मान बैठे थे कि सरकार की मुस्लिम पक्ष के प्रति तुष्टिकरण की नीति सिर्फ राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गाँधी के कारण ही है।

देश को आज़ाद हुए कुछ महीने ही बीते थे। साल 1948 की 30 जनवरी की तारीख को नाथूराम गोडसे ने राष्ट्रपिता की हत्या कर दी। इस जुर्म के लिए उन्हें 15 नवंबर, 1949 को अंबाला जेल में फांसी की सजा दे दी गयी। उन्होने बेहद करीब से गांधीजी को छाती में तीन गोलियों मारी थीं। कहा जाता है कि नाथूराम गोडसे हिन्दू राष्ट्रवाद के कट्टर समर्थक थे।

नाथूराम गोडसे एक ब्राह्मण परिवार से थे, उन्होने अपनी हाई स्कूल की शिक्षा भी अधूरी छोड़ दी थी। इसके बाद वे स्वतंत्रता के हवन कुंड में कूद गये। दावा किया जाता है कि गोडसे अपने भाई-बधुओं के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से भी जुड़ गये थे। फिर बाद में उन्होने ‘हिन्दू राष्ट्रिय दल’ के नाम से अपना संगठन बना लिया था।

महात्मा गाँधी की हत्या नाथूराम गोडसे ने क्यों की ? इसकी वजहों के लिए बहुत सी थियोरियाँ सामने आती हैं। कोई कुछ कहता है, तो कोई कुछ। सभी लोग अपने मन में कोई न कोई बात समझें बैठें हैं। लेकिन हत्या के पीछे सही वजह क्या रही, यह गुत्थी आज तक अनसुलझी ही रही है। कोई गाँधी का प्रशंसक है तो कोई नाथूराम गोडसे का चाहने वाला। कोई इसे भी राजनीति से जोड़ कर देखता है। इस विषय में लिखने के लिए इंक भी वेस्ट हुई और टाइम भी। कहते हैं कि नाथूराम गोडसे कई बार गाँधी जी की हत्या की कोशिश में लगे रहे लेकिन वे अपने इस मौके को ढूंढ नहीं पाये।

”वह एक साधु हो सकते हैं लेकिन वह एक राजनीतिज्ञ नहीं हैं” – महात्मा गाँधी के लिए नाथूराम गोडसे

एक आर्टिकल में लिखा गया था कि गोडसे यह मानते थे कि गांधीजी ने ही देश को बांटा है। देश का विभाजन उनकी वजह से ही हुआ है। वह यह मानते थे कि दोनों देशों में अपनी अच्छी छवि बनाने के लिए ही गाँधीजी ने यह काम किया। जिस तरह उस समय की सरकार मुस्लिमों के लिए अनुचित रूप से तुष्टिकरण कर रही थी, इसको भी गाँधीजी की नीतियों से जोड़ा जा रहा था। कहा जाता है कि गोडसे उस समय काफी परेशान हो गये थे जब उन्हे पता चला कि कश्मीर समस्या के बावजूद जिन्ना ने गांधीजी के पाकिस्तान दौरे के लिए बिलकुल सहमति दे दी हैं। वह यह सोचते थे कि इन सब चीज़ों का होना इसलिए है क्योंकि गांधीजी का मुस्लिमों के प्रति कुछ ज़्यादा ही दया भाव बना हुआ है और उन्हें हिन्दुओं के प्रति कोई भावना बनी हुई ही नहीं है।

अगर हम वजह जानने के लिए बैठें तो कई सारी बातें उठ कर आजाएंगी। अब अगर लोगों की राय जानें तो, कोई इसे राजनीति का मुद्दा बताता है या कोई इसे सोची समझी साजिश कहता है। तर्कों में जानें तो यह भी सामने आता है कांग्रेस ने पाकिस्तान को किये वादे के बावजूद करीब पचास करोड़ रुपए नहीं देने की बात मानी थी। राष्ट्रपिता चाहते थे कि कांग्रेस अपना यह फैसला बदल दे। उन्होंने इसके आमरण अनशन की भी धमकी दे डाली थी। गोडसे को यह लगा कि गांधीजी मुस्लिमों के लिए यह काम कर रहे हैं। कुछ लोग यह कहते हैं की क्या पता महात्मा गाँधी ने ही अपनी मौत की प्लानिंग की हो? क्या पता वह यह जानते हों कि मेरी मौत कब आने वाली है ? लेकिन जब उन्हें गोली लगी तो उनके मुँह से आखिरी शब्द था – राम