गाँव की नारी भी नहीं है किसी कम, हर काम में दिखाती है अपना दम-ख़म

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भारत की महिलाएं – आज के युग में, गाँव में रह रही महिलाओं की स्थिति चूल्हे-चौके तक ही सीमित नज़र आती है। सुबह से लेकर शाम तक घर के अंदर ही हज़ार काम करने वाली महिलाओं को समाज कामकाजी नहीं कहता। क्योंकि आज के समय में 60% लोगों की सोच यही है कि घर का काम ही तो एक नारी का असली काम है। आज भी देश भर में कितने ऐसे गाँव होंगे जो महिलाओं को या लड़कियों को उच्च शिक्षा नहीं देते। इसका कारण यह माना जा सकता है कि या तो वह पढ़ने-लिखने को सही नहीं मानते या फिर उनके पास वह आधार नहीं जिससे कि वह पढ़-लिख कर अच्छी अफसर बन जाएँ।

ऐसा नहीं है, कि लडकियां पढ़ना नहीं चाहती लेकिन पुरानी सोच आज भी उनके पैर पकड़ लेती है। उन्हें यह उम्मीद है कि वह उड़ सकती हैं, लेकिन कुछ लोग उन्हें अच्छा पढ़-लिख जाने को 'ज़्यादा उड़ना सही नहीं है' कह कर रोक लेते हैं।

ऐसा नहीं है, कि लडकियां पढ़ना नहीं चाहती लेकिन पुरानी सोच आज भी उनके पैर पकड़ लेती है। उन्हें यह उम्मीद है कि वह उड़ सकती हैं, लेकिन कुछ लोग उन्हें अच्छा पढ़-लिख जाने को ‘ज़्यादा उड़ना सही नहीं है’ कह कर रोक लेते हैं। अगर आज भी गाँव की कोई भी गाँव छोड़ कर किसी दूसरे शहर जाती है तो लोग यही कह देते हैं कि लड़की हाथ से निकल गई इनकी।

लेकिन इसके अलग हम गाँव-देहात में होने वाले कामों की बात करें तो बहुत से ऐसे काम हैं  हम नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते।

लेकिन इसके अलग हम गाँव-देहात में होने वाले कामों की बात करें तो बहुत से ऐसे काम हैं जिन्हें हम नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। आपको खेतों में हल चलाती हुई एक ‘वर्किंग वूमेन’ और घर में चूल्हे पर खाना बनाती हुई ‘हाउस वाइफ’ दिख जायेगी। वह भी माँ लक्ष्मी और माँ अन्नपूर्णा का काम करती है। रात को बच्चों को लोरियां सुना कर सुलाने का काम भी करती हैं और सुबह की पहली किरण के साथ उनके हर काम को करने के लिए दौड़ पड़ती हैं।

देश में कई-कई मीलों तक चलकर महिलाएं और बच्चियां अपने घर के लिए पानी लेकर आती हैं। घर में चूल्हे पर खाना आज भी उपलों की मदद से ही बनाया जाता है।

देश में कई-कई मीलों तक चलकर महिलाएं और बच्चियां अपने घर के लिए पानी लेकर आती हैं। घर में चूल्हे पर खाना आज भी उपलों की मदद से ही बनाया जाता है। खेतों में उगने वाले जिस अनाज को हम और आप खा रहे हैं वह भी इस भारतीय नारी की ही देन है। कृषि से लेकर खाद्य पदार्थों तक हर जगह महिला का सहयोग रहा है।

अभी हाल ही में, 15 अक्टूबर को इंटरनेशनल डे ऑफ रूरल वूमेन' मनाया गया। इस बार का थीम था - लैंगिक समानता के लिए सतत अवसंरचना, सेवाएं और सामाजिक संरक्षण और ग्रामीण महिलाओं और लड़कियों का सशक्तिकरण (Sustainable infrastructure, services and social protection for gender equality and the empowerment of rural women and girls).

अभी हाल ही में, 15 अक्टूबर को इंटरनेशनल डे ऑफ रूरल वूमेन‘ मनाया गया। इस बार का थीम था – लैंगिक समानता के लिए सतत अवसंरचना, सेवाएं और सामाजिक संरक्षण और ग्रामीण महिलाओं और लड़कियों का सशक्तिकरण (Sustainable infrastructure, services and social protection for gender equality and the empowerment of rural women and girls).

आजकल गाँव में रह रही महिलाएं और ; मजदूरी, खेती-बाड़ी, बाल-मजदूरी, दूर जगह से पानी इखट्टा करना, हेल्थ में परेशानी, ईंधन के लिए संघर्ष करना, जैसी परेशानियां झेल रही हैं।

आजकल गाँव में रह रही महिलाएं और ; मजदूरी, खेती-बाड़ी, बाल-मजदूरी, दूर जगह से पानी इखट्टा करना, हेल्थ में परेशानी, ईंधन के लिए संघर्ष करना, जैसी परेशानियां झेल रही हैं। अगर महिलाएं खेती-किसानी का काम करना भी चाहें तब भी उन्हें इसके लिए काफी हद तक लड़ना पड़ता है। पर जब बात खेती-किसानी में हो रही परेशानी को लेकर उठती है तो यही ग्रामीण महिलाएं अपने कदम पीछे नहीं रखती।

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