Children’s Day Special:- 14 नवंबर, बाल दिवस, अंग्रेजी में कहें तो ‘Childrens Day’. इस दिन देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का जन्म दिन है। वह बच्चों से बहुत प्यार करते थे तो उनके जन्मदिवस को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। बच्चों के प्यारे जवाहरलाल नेहरू को ‘चाचा नेहरू’ के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन उन्हें सभी बच्चे यद् करते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं।
जवाहरलाल नेहरू का कहना था, बच्चे देश का भविष्य हैं, इसलिए यह जरुरी है कि उन्हें प्यार दिया जाए और उनकी देखभाल की जाए जिससे वह अपने पैरों पर खड़े हो सकें। इसी उम्मीद में हर साल इस दिन बच्चों के लिए रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं और उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है।
लेकिन क्या हम इकीसवीं सदी में रहने वाले, बाल दिवस के सही अर्थ को समझ रहे हैं। जानते हैं कुछ दिलचस्प बातें।
देश की बदहाल शिक्षा प्रणाली, ‘क, ख, ग’ भी सही से नहीं सीख पाते
Children’s Day Special:- देश में हर साल बाल दिवस तो मनाया जाता है, पर देश के उज्जवल भविष्य की स्थिति अच्छी नहीं है। सरकार हर साल ‘राइट टू एजुकेशन’ के लिए कोई न कोई नई योजना बनाती है। इस योजना में बाल वर्ग होता है गरीब परिवार के बच्चे। हर साल, देश के बजट के लिए कुछ करोड़ रुपए गरीब बच्चों के लिए स्कूली शिक्षा में लगा दिए जाते हैं। इन स्कूलों में बच्चों के लिए पढ़ना एक मजबूरी रहता है। क्योंकि, देश के कई स्कूल ऐसे हैं जहाँ इंफ्रास्ट्रक्चर, एजुकेशन, क्वालिटी ऑफ़ फ़ूड के लिए काम होता ही नहीं है। देश में कई ऐसे स्कूल हैं, जहाँ आज भी सर्दियों में बच्चों के लिए दरी बिछाई जाती है। आज भी देश के कई बच्चे नयी किताब-कॉपी के लिए तरसते हैं। आज भी देश के काफी बच्चे भूखे पेट स्कूल में अच्छे भोजन और पढाई के लिए ही एक नयी आशा लिए जाते हैं।
सड़कों पर फूल बेचते हैं, फूल से बच्चे
Children’s Day Special:- कभी दफ्तर जाते समय या किसी रिश्तेदार से मिलने जाते समय, किसी चौराहे पर आपने भी बच्चों को गुब्बारे बेचते हुए या गुलाब बचते हुए या पेन बेचते देखा होगा। ‘दीदी, भैया’ के नाम पर जिद्द करने वाले बच्चे बस इसी उम्मीद में बैठे रहते हैं कि कोई उनकी बिक्री कर जाए। उन पैसों से वह अपनी भूख मिटा सकें। किसी नुक्कड पर लगे चांट-पकौड़ी की दुकान पर बर्तन धोते हुए भी बच्चे दिख जाते हैं। लेकिन, क्या ही करें। कई बार किसी चौराहें पर ईंटों के एक छोटे से चूल्हे पर किसी माँ को देख दिल तब पसीजा होगा जब वह जैसे तैसे रोटी बना कर आपने लाल को खाना खिला रही होगी। आपको भी अपनी माँ की याद आ गयी होगी। लेकिन, सरकार यहाँ भी नज़र छुपाए चली जाती है। इन लोगों के लिए बजट लिस्ट में कोई जगह नहीं रहती।
स्वास्थ्य के नाम पर कुछ भी नहीं है गरीबों के लिए
Children’s Day Special:- देश की आंगनबाड़ियों में हर महीने गरीब बच्चों को मुफ्त के टीके लगाए जाते हैं। यह टीके उन्हें हर तरह की बिमारियों से बचाते हैं। देश के कई बड़े सरकारी स्कूलों में बच्चों को एंटी-रेबीज़ के इंजेक्शन लगाए जाते हैं। पर आज भी इस मुद्दे के आंकड़ों को देखा जाए तो कोई भी व्यक्ति सर पकड़ कर बैठ जाए। आंगनबाड़ियों की स्थिति बिलकुल बदहाल है। न ही कोई इनकी मदद करने वाला है न ही कोई इनकी परेशानी का हल करने वाला। आज भी देश के गरीब बच्चों के लिए ‘कुपोषण’ एक बड़ी समस्या है। हर बच्चे को सही प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट्स, विटामिन्स, और खनिजों की सख्त जरुरत है, लेकिन इन सभी चीज़ों के बारे में उन्होंने कभी सुना ही नहीं होगा। सरकार बड़े-बड़े पोस्टरों में यह तो छाप देती है कि ‘हर बच्चे को मिले, स्वस्थ और भरपूर भोजन’, परन्तु, वह खुद इन शब्दों को सही से नहीं समझ पाते।
बच्चों को देश का आने वाला भविष्य तो कह दिया लेकिन, उनकी ऐसी हालत। बाप रे…
प्रश्न बस उठता है, क्या हर साल इसी तरह से बाल दिवस मनाया जाएगा? जिस तरह सरकार किसी न किसी महत्वपूर्ण दिन को और यादगार बनाने के लिए नए-नए प्लान बनाती है, तो क्या ‘बाल दिवस’ पर भी कुछ अच्छा होना चाहिए? क्या स्कूली शिक्षा में चुनावों से ज़्यादा ध्यान देना सही है? क्या रैलियों में लगाने वाला पैसा, अस्पतालों में अच्छी चिकित्सा नहीं दे सकता ? क्या रोड पर सामान बेचने वाले बच्चे हर बार 15 अगस्त के दिन झंडा ही बेचते रहेंगे ? सवाल कई है और जवाब भी। अगर सही तरीके से समझा जाए तो यह समस्या बड़ी नहीं।