Nostalgic Bikes: 90 का दशक यानि खुशियों का एक अलग पिटारा। वो जमाना एक अलग जमाना था, जहाँ महँगी चीज़ें नहीं बल्कि छोटी-छोटी बातों में खुशियाँ होती थी। आज हम खुशियों का मतलब समझते हैं, लम्बोर्गिनी, मर्सिडीज़ और हार्ले डैविडसन जैसी गाड़ियाँ।
लेकिन 90 के दौर में यह गाड़ियाँ भी मर्सिडीज़ से कम नहीं थी। इन गाड़ियों से हमारी ढेर सारी यादें जुड़ी हैं।
पापा का स्कूटर
बचपन में पापा की होती थी गाड़ी और हम बनते थे सवारी। सुबह पापा स्कूल छोड़ कर आते थे, और जब पापा ऑफिस से घर आते तो घर में घुसने से पहले पापा उसी स्कूटर पर गली के चक्कर लगवाते। बड़े हो कर पापा का वो स्कूटर चलाना सपना होता था, उस स्कूटर को लेकर जाना वहाँ भाई टशन तो अपना ही चलता था।
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स्कूल से घर, घर से कोचिंग क्लास जाते वक़्त लगती थी रेस। जहाँ सारे दोस्त में होती थी होड़ और देखते थे कौन है, कितने पानी में। जो जीत जाता वो विनर और हारने वाला सबका टारगेट बन जाता। कई बार शर्तें भी लगती थी, जिसमें जीतने वालों को चाउमीन और हारने वाले की जेबे खाली होती।
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गर्मी की छुटियाँ पड़ते ही घर में रिश्तेदार आ जाते थे। ऐसे में घूमने निकलते थे पापा की कार से जहाँ सभी एक ही कार में एडजस्ट होते थे, और पूरा शहर घूमते थे।
वो पहली बाइक: स्प्लेंडर
आज हम जो चाहें पापा से जिद करके वो बाइक ले लेते हैं। लेकिन 90 के दशक में बाइक लेना इतना आसान नहीं था। तब तो पापा के सामने जाने की भी हिम्मत नहीं होती थी। ऐसे वक़्त में सहारा होती थी मम्मी जो पापा से सिफारिश कर हमें बाइक दिलवाती थी। बेचारी, हमारे चक्कर में बहुत डांट सुनती थी।
लेकिन उनकी मेहनत सफल होती थी, और हमें हमारी पहली बाइक मिल ही जाती थी। जो की ज्यादातर स्प्लेंडर हुआ करती थी।
अगर आपके पास टाटा सूमो हैं, तो आप अमीर हो
अमीरी-गरीबी का खेल तो तब भी था, सब अपनी जेब देख कर खर्च किया करते थे। तो घर में कार में भी आपके पॉकेट के हिसाब से हुआ करती थी। लेकिन कुछ भी हो खुशी की कमी नहीं थी।