तो क्या अब एमबीए की डिग्री पाने वाले करेंगे ऐसा काम ?

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Unemployment In India

Unemployment In India- तीन हज़ार पांच सौ ग्रेजुएट लोगों ने स्वीपर के काम के लिए अप्लाई किया है। खबर सच्ची है। इस जगह का नाम है तमिल नाडु का कोयम्बटूर। इस जगह 549 स्वीपर की पोस्ट खाली हैं जिसके लिए कई एमबीए की डिग्री पाने वाले स्टूडेंट्स ने अप्लाई कर दिया है।

इन लोगों में ज़्यादातर लोग कोई न कोई प्रोफ़ेशनल डिग्री लेकर बैठे हैं। ख़बरों के मुताबिक़,तमिल नाडु की म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन की तरफ से तीन दिवसीय एक प्रोग्राम चल रहा है जिसमें इस पोस्ट की भर्ती के लिए सिग्नेचर और सर्टिफिकेट आदि डाक्यूमेंट्स की जाँच की गई। इस पोस्ट के लिए लोग करीब पंद्रह हज़ार से पचास हज़ार रुपये की सैलरी की गुंजाइश रख रहे हैं।

इनमें से काफी तो ऐसे हैं जो पहले भी किसी न किसी कंपनी में काम कर चुके हैं। पर, सरकारी नौकरी का नाम सुनते ही ये लोग इस मौके को गंवाना नहीं चाहते।

यदि बेरोजगारी इस कदर बढ़ती रही तो, 2030 तक बद्द्तर होगी स्थिति

यह पहली बार नहीं है। इससे पहले भी काफी खबरें आई हैं कि अच्छी नौकरी न मिलने के कारण एमबीए पास आउट ऐसी जॉब करने के लिए तैयार हैं। अब, इसे एजुकेशन का गिरता स्तर कहें या देश में बढ़ रही अनएम्प्लॉयमेंट। आप खुद ही तय कर लीजिए।

ऐसी नौकरी करने के कई कारण हैं लेकिन मुख्य कारण यह है कि देश का युवा वर्ग आज के समय में 12 घंटे के लिए छह से आठ हज़ार रुपए महीना की नौकरी कर रहा है। युवा वर्ग इसे बेकार मानता है। देश में बढ़ रही यह समस्या जोंक की तरह देश को खा रही है।

Unemployment In India- 2017-18 में देश में बेरोज़गारी का स्तर 6.1 फीसदी पहुँच गई थी। साल 2019 अक्टूबर माह में 8.48 प्रतिशत था और सितम्बर महीने में बेरोज़गारी का स्तर 7.2 प्रतिशत रहा था। इस रिपोर्ट को पेश किया था सीएमआईए ने।उनकी रिपोर्ट को पढ़ें तो अगस्त 2016 के बाद से बेरोज़गारी का स्तर सर्वोच्च आंकड़ा रहा। उस समय बेरोज़गारी का स्तर 9.59 प्रतिशत पहुंचा।

एक रिपोर्ट में लिखा था कि पुरुषों के मुकाबले में सबसे ज़्यादा महिलाएं ही बेरोज़गार हैं। देश में महिला और पुरुष की शिक्षा योग्यता एक सी है लेकिन, सिर्फ पुरुष ही हैं जिन्हें नौकरी मिल पा रही है।

हॉवर्ड यूनिवर्सिटी के दो छात्रों ने भारत में नियुक्ति में लैंगिक समावेश के टॉपिक पर एक रिसर्च की थी। इस रिसर्च के मुताबिक़, कुछ चुने गए शहरों में काम करने वाली योग्य शिक्षित महिलाओं में से 8.7 प्रतिशत बेरोज़गार है। अगर इसकी तुलना हम पुरुषों से करें तो सिर्फ चार फीसदी पुरुष ही हैं जिनके पास काम नहीं है।