Government Primary School in UP- हमारे देश में सरकारी स्कूलों की दशा दिनों-दिन दुर्दशा बनती जा रही है। बच्चे आते हैं तो टीचर नहीं, अगर टीचर है तो किताबें नहीं, किताबें हैं तो कक्षा में बैठने के लिए सीट नहीं, सीट हैं तो खाने को सही मीड-डे मील नहीं। यह सब चलता रहता है हमारे गवर्नमेंट स्कूलों में। या तो बच्चे टीचर की शिकायत करते नज़र आते हैं या फिर टीचर प्रशासन के बारे में कुछ न कुछ कहता रहता है।
हर साल, सरकार अपने अपने राज्यों के बजट में से थोड़ा बहुत धन सरकारी स्कूलों की झोली में डाल देती है। इस पैसे को अलग-अलग स्कूलों के अकाउंट में डाल दिया जाता है। फिर, यह पैसा स्कूलों में खाना, सीट, किताबें, कंस्ट्रक्शन वर्क, बच्चों की स्कूल ड्रेस, आदि चीज़ों में बँट जाता है। लेकिन, सरकार यहाँ भी घोटाला करती है।
हमारे यहाँ सरकारी टीचर बनना बेहद आसान है। कुछ न कुछ जुगाड़ करना है बस। आप किसी विधायक के पास भी अर्जी लगा सकते हैं। या फिर, आपके सगे-संबंधी किसी सरकारी विभाग में काम करते हों और किसी कारणवश उनकी मौत हो जाती है तो आपको उनके आधार पर नौकरी मिल सकती है।
आपने कई खबरें सुनी होंगी, जब किसी अंग्रेजी के टीचर से अंग्रेज़ी शब्द नहीं पढ़ा जा रहा हो। या फिर, वो खबर तो याद होगी न आपको, जब एक टॉयलेट सीट के ऊपर बच्चों के लिए मिड-डे मील बनाया जा रहा था। या फिर, अभी वो खबर भी आयी थी कि एक लीटर दूध में बाल्टी भरकर पानी मिला दिया था। यह खबर तो काफी दिनों तक चर्चा में रही।
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अभी एक और बड़ी मज़ेदार सामने आ रही है। खबर है कि एक ही नाम का टीचर, तीन अलग-अलग जिलों में एक साथ पढ़ा रहा है। अब आप कहेंगे की तीनों के नाम एक हो सकते हैं लेकिन, जनाब यहाँ तो तीनों के पिता के नाम, आधार कार्ड और पैन कार्ड भी एक ही हैं। यह अजब-गज़ब नज़ारा और कहीं की नहीं उत्तर प्रदेश के सरकारी प्राइमरी स्कूलों में देखने को मिल रहा है। सरकार को मालुम हुआ की टीचर के नाम पर यह घोटाला चल रहा है तो इस गड़बड़ी की जांच के लिए एक स्पेशल टास्क फ़ोर्स बनाई गई। जांच हो रही है कि कहीं ऐसा खेल और कहीं तो नहीं खेला जा रहा है।
अभी तक की जाँच में, चार हज़ार से ज़्यादा ऐसे फ़र्ज़ी टीचरों के बारे में पता कर लिया गया है। कहा जा रहा है कि यह गिनती और भी ज़्यादा बढ़ सकती है। यानी की एक नाम के बहुत से टीचर्स अलग-अलग जिलों के ना जाने कितने स्कूलों में पढ़ा रहे होंगे। कहा जा रहा है की प्राइमरी टीचर्स पर उत्तर प्रदेश सरकार करीबन 65 हज़ार करोड़ रूपये के बजट में से करीबन 10-15 हज़ार रूपये तो यूँही फ़र्ज़ी टीचर्स पर खर्च हो रहे हैं।
इसके लिए जो जांच कमेटी बैठी है उसने इस मामले को छोटा माना था, लेकिन यह तो थमने का नाम ही नहीं ले रहा। अगर, सरल भाषा में जानें तो यूपी में सरकार के साथ शिक्षा के नाम पर मज़ाक उड़ाया जा रहा है। अब यह मज़ाक कितना बड़ा मज़ाक बनेगा किसी को नहीं मालुम। लेकिन, यह तो है की यहाँ शिक्षा की हत्या हो रही है।