इन दिनों मोब लिंचिंग के मामले दिन प्रति दिन बढती जा रही है. लेकिन सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है.सुप्रे कोर्ट ने हाल में ही केंद्र सरकार को फटकार लगते हुए कहा था कि सर्कार इसको लेकर जल्द से जल्द कानून बनाए. लेकिन सरकार अभी भी गंभीर नहीं दिख रही है. हाल में ही केंद्रीय मंत्री द्वारा मॉब लिंचिंग शामिल दोषियों का समर्थन करना और उनका स्वागत करना किस बात को दर्शाता है. इसे यही पता चलता है कि सरकार के कुछ मंत्री कानून को हाथ में लेने वालों को बढ़ावा दे रही है.
यह है मामला
मोब लिंचिंग देश में एक अहम् समस्या बना गयी है. हालांकि इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट सख्त रवाया अपनाती दिख रही है, लेकिन सरकार के कानो में जू तक नहीं रेंग रही है. कोर्ट के आदेश के बाबजूद सरकार अभी तक इसपर कोई कानून नहीं बना पाई है. सुप्रीम कोर्ट ने भीड़ की हिंसा को रोकने के लिए सरकार से सख्त कदम उठाने के निर्देश दिए थे. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि भीड़ की हिंसा को रोकनासरकार की जिम्मेदारी है.
सरकारें अब तक मौन क्यों बैठी है?
सवाल यह उठ रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाबजूद सरकार इस और एक्शन लेने में नाकामयाब क्यों है? इस गंभीर मसले पर सरकार की तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए? भारी बहुमत से साथ सत्मेंता में आई बीजेपी इस गंभीर मसले को रोकने के लिए कोई कानून क्यों नहीं बना पाई है? यह घटना खास तौर पर बीजेपी शासित राज्यों में ही हो रही है. तो क्या मान लिया जाये कि बीजेपी इस तरह की घटना करने वालो को बढ़ावा दे रही ही. अजानकारी के लिए बता दे कि अबतक इस मामले में करीब 100 से ज्यादा लोगो की जान चली गयी है. गोरक्षा के नाम पर हुई हिंसा करके लोगो को मरना एक चलन हो गया है.
मॉब लिंचिंग की 97 फीसदी घटनाएं मोदी सरकार
भीड़ के हाथों हो रही हिंसा, यानी मॉब लिंचिंग के जो आंकड़े हमारे सामने हैं उसके लिए सोशल मीडिया सबसे ज्यादा जिम्मेदार बताया जा रहा है. वाट्सएप इन दिनों हर कोई इस्तेमाल करता है. इसी वजह से वाट्सएप को इस मामले में सबसे ज्यादा विल्लेन मन जा रहा है ऐसे में यह एक खतरनाक हथियार बनता जा रहा है. सोशल मीडिया से फैल रही अफवाहों और उसकी वजह से होने वाली हिंसा का खतरा इतना बढ़ गया.