Muharram एक इस्लामी महीना है और इस दिन को इस्लाम धर्म के लोग नए साल की शुरुआत करते हैं। इस दिन इस्लाम धर्म के लोग मातम भी मनाते हैं। यह मातम 10वे Muharram को हजरत इमाम हुसैन की याद में मनाया जाता है। कहा जाता है कि इस महीने की 10 तारीख को हजरत इमाम हुसैन की शहादत हुई थी। इस दिन को रोज-ए-आशुरा कहा जाता है। इस्लामिक धर्म में यह दिन सबसे अहम माना गया है। इस दिन इस्लामिक लोग हुसैन की याद में जुलूस निकालते हैं और रोज़ा रखने की परंपरा को भी पूरा करते हैं।
इस साल इस्लाम धर्म में Muharram का महीना एक सितंबर से अट्ठाईस सितंबर तक रहेगा। जिसमें 10वां Muharram का दिन बेहद ख़ास माना जाता है। कहते हैं कि इस्लाम धर्म की रक्षा के लिए हाजत इमाम हुसैन ने 10वां Muharram वाले दिन खुद को कुर्बान किया था।
इस्लाम धर्म की मान्यताओं के अनुसार, इराक में यजीद नाम का एक जालिम बादशाह हुआ करता था। वह इंसानियत का दुश्मन था और खुद को खलीफा मानता था। उसे अल्लाह पर विश्वास नहीं था। उसकी यह चाह रखता था कि हजरत इमाम हुसैन उसके खेमे में शामिल हो जाये। पर हुसैन इसके खिलाफ हो गए और उन्होंने यजीद के विरुद्ध जंग का ऐलान कर दिया। पैग़म्बर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन को कर्बला में परिवार और दोस्तों के साथ शहीद कर दिया था। और इसी महीने को मुहर्रम का महीना कहा जाता है।
Muharram का महीना मातम मनाने और धर्म की रक्षा करने वाले हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद कर शोक मनाया जाता है। शिया समुदाय के मुस्लिम लोग Muharram के दिन, काले रंग के कपडे पहनते हैं। हुसैन की शहादत को याद करते हुए सड़कों पर जुलूस निकाले जाते हैं। मुहर्रम की नौ और दस तारिख को मुसलमान रोज़े रखते हैं। मस्जिदों और घरों में इबादत की जाती है। वहीं, सुन्नी समुदाय के लोग मुहर्रम के महीने के 10 दिन तक रोजे रखते हैं। ऐसा कहा जाता है कि मुहर्रम के एक रोज़े का सबाब 30 दिनों के बराबर मिलता है।