Vijayadashmi – “बुराई पर अच्छाई की जीत” नाममात्र त्यौहार या काम से मिलने वाली छुट्टी

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Vijayadashmi

Vijayadashmi – हर साल हम विजयदशमी का पर्व बड़ी धूम धाम से मनाते हैं। हज़ारों सालों से चली आ रही वही प्रथा को हर बार दौहराते हैं। उसी कहानी को रामलीला के माध्यम से हर बार दर्शाते हैं। हर साल बुराई पर अच्छाई की जीत होती है। और हर साल कई फ़ीट ऊँचे रावण, मेघनाथ और कुम्भकरण के पुतले फूंके जाते हैं।

इस त्यौहार के लिए कई दिनों तक मेले सज जाते हैं। मेले में घूमने के लिए सैकड़ों लोग वक़्त निकाल थोड़ी मौज मस्ती कर लेते हैं। बड़े-बड़े झूले, मौत का कुआँ, सर्कस, जैसी हज़ार चीज़ों से मेले सज जाते हैं। हर तरफ चमकती हुई झालर और मिठाइयों की खुशबू। इस समय ज़्यादातर चहलक़दमी दिखाई देती है छोटे-छोटे बच्चों की।

Vijayadashmi की कथा तो हर किसी ने सुनी है और रामलीलाओं में देखी भी होगी। भगवान राम का रावण का वध करना और देवी दुर्गा के नौ दिन एवं दस दिन के युद्ध के उपरान्त महिषासुर का वध करके विजय प्राप्त करना। असत्य पर सत्य की जीत। बुराई पर अच्छाई की जीत। इसीलिए इसे नाम दिया गया है, ‘विजय दशमी’. लेकिन अब यह त्यौहार सिर्फ नाम नात्र रह गया है या फिर इस त्यौहार का अर्थ आज भी जीवित है।

Vijayadashmi को दशेहरा भी कहा जाता है। इस दिन लोगों को काम से छुट्टी मिल जाती है। अपने परिवार के लिए कुछ वक़्त साथ बिताने को भी मिल जाता है। लेकिन कहीं न कहीं यह दिन अपना अर्थ भूलता जा रहा है। जहाँ पहले लोग मेले में रामलीला देखने और कुछ सीखने जाते थे। वहाँ आज लोग सिर्फ वक़्त बिताने के लिए ही जा रहे हैं। अगर देखा जाए तो भगवान राम ने रावण के अहंकार को ख़त्म किया था। और इस बात को तो हर कोई जानता है कि रावण अधिक पराक्रमी, अधिक बलशाली और अधिक ज्ञानी था। रावण को सभी वेदों का ज्ञान था। भगवान शिव शंकर के बहुत बड़े भक्तों में उनका नाम सामने आता है। पर, क्या हम अपने अंदर के रावण को मार रहे हैं या नहीं ?

जिस तरह हम नए साल के मौके पर खुद से कई वादे करते हैं। खुद को बदलने के या खुद में किसी अच्छी चीज़ को अपने जीवन में शामिल करने के प्रण लेते हैं। उसी तरह क्या हम इस विजयादशमी के पर्व पर बुराइयों को भूल रहे हैं ?