26/11 Mumbai Terror Attack- 26/11 का वो मुंबई हमला जिससे पूरी मायानगरी थर्रा उठी थी। खौफ था मौत का। कई लोगों के सामने मौत तांडव कर रही थी। चीखें और चिल्लाना, आँसू और भगवान से ज़िन्दगी माँगी जा रही थी।
मौत, समुद्री लहरों को भी चीरती हुई आयी थी। उन्हें, इंसान कहें या मौत के सौदागर, आप जान लीजिए। लेकिन, हाँ यह सच है कि वह मौत लाए थे। वह 10 थे। नौजवान ही थे। उनके बैग में 10 एके-47, 10 पिस्टल, 80 ग्रेनेड , 2000 गोलियां, 24 मैगज़ीन, 10 मोबाइल फोन, विस्फोटक और टाइमर्स, और हाँ, खाने के लिए वह लोग बादाम और किशमिश लाए थे।
26/11 Mumbai Terror Attack- यह दिन कोई भारतीय नहीं भूल सकता। हर किसी की नज़रें टीवी स्क्रीन पर ही टिकी हुई थी। हर कोई दुआ कर रहा था कि सब ठीक हो।
हर तरफ खून था और थीं लाशें
जहाँ-जहाँ हमले हुए वहाँ-वहाँ सिर्फ लाशों के ढेर ही ढेर थे। बेमौत मौत का आना, यह हमला एक उदाहरण बन चूका था। लोगों के सामने उनकी मौत थी। कई मारे गए। आखिरी सांसें गिन रहे थे।
26/11 Mumbai Terror Attack- 26/11 के मुंबई हमले को 11 साल हो चुके हैं। इस हमले में करीब 160 लोगों की मौत हुई। कई लोग घायल हुए। शायद, इन लोगों की संख्या और बढ़ जाती, लेकिन कुछ लोगों ने अपनी जान की परवाह नहीं की थी।
लोगों को बचाने के लिए आए थे वो, अपनी जान की बिन-परवाह के
मानों, लोगों की जान बचाने के लिए भगवान के दूत धरती पर उतर आए हों। जो जान बचा रहे थे उन्होंने भी जान गंवाई। लेकिन, दिल में एक ही आवाज़ थी, इतनी जानें नहीं जाएंगी। इन शहीदों के नाम थे, करमवीर सिंह कांग, हेमंत करकरे, विजय सालस्कर, तुकाराम ओंबले, मेजर संदीप उन्नीकृष्णन, सदानन दाते, अंजली कुल्थे, आर तमिल सेल्वन।
महाराष्ट्र में चल रहा ‘सियासी खेल’, काफी लोगों की समझ के बाहर
कहा जाता है, वो हमलावर कराची से समंदर के रास्ते भारत में घुसे थे। इस नाव में जो भारतीय थे वो पहले ही मार दिए गए थे। वह सभी हमलावर चार भागों में बँट गए थे। उनका मकसद सिर्फ यही था मौत लाना। उन्होंने मुंबई के प्रमुख इलाकों को अपना टारगेट बनाया हुआ था।
खेल शुरू हुआ था, मुंबई के रेलवे स्टेशन के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से। यहाँ हुई थी, 58 मौतें। इसके साथ होटल ताज, होटल ओबेरॉय, लियोपोल्ड कैफ़े, कामा अस्पताल और मुंबई के दक्षिण भाग के काफी हिस्सों पर आंतकियों का निशाना था।
इस हमले में 9 आतंकी मारे गए, बस एक बचा था। उसका नाम था अजमल आमिर कसाब। जब उसने अपने साथियों की लाश देखी तो चिल्ला उठा – ‘मुझे यहाँ से ले जाओ।’ उसे साल 2012, 21 नवंबर को फांसी दे दी गई थी। देश ने इस हमले को करवाने के लिए लश्कर-ए-तैयबा को दोषी बताया था।