Delhi Government Schools:- दिल्ली के सरकारी स्कूलों की बदली तस्वीर को देख, रिश्वत देकर अपने बच्चों का एडमिशन करवाना चाहते हैं अभिभावक

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Delhi Government Schools:- दिल्ली में सरकारी स्कूलों में दाखिले के लिए लम्बी लाइन लग चुकी है। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा, देश की राजधानी के सरकारी स्कूलों में दाखिला करवाने के लिए माँ-बाप रिश्वत देने को तैयार हैं। इसके साथ, उन्होंने कहा, दिल्ली के सरकारी स्कूलों में सरकार द्वारा किए गए सुधार कार्यों को देख कर लोग अब अपने बच्चों का दाखिला कराने के लिए कुछ भी कर सकते हैं।

अब लोग अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में भेजने की बजाए, सरकारी स्कूल में भेजने को तैयार हैं। दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री ने यह बात बुधवार को आयोजित एक कार्यकर्म में कही। उन्होंने कहा, दिल्ली में सरकारी स्कूलों में किए गए बेहतरीन सुधार कार्यों को देख कर, अब लोग अपने बच्चों के एडमिशन के लिए रिश्वत देने को तैयार हैं।

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इस बात को कहने में कोई दो-राहे नहीं हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने मानो कोई जादू-सा चलाया हो, सरकारी स्कूल के सुधार के लिए। दिल्ली के मुख्यमंत्री के अनुसार, पिछले चार सालों से सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में काफी काम किया है। देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी इस काम की गूँज सुनाई देती है। शिक्षा के क्षेत्र में दिल्ली पुरे देश को नई राह दिखा रही है।

इन सरकारी स्कूलों में शिक्षा का सुधार तो हुआ है, इसके साथ, साफ़ खाना-पानी और शौचालय जैसी चीज़ों पर भी काम किया गया है। पहले ज़्यादातर, सरकारी स्कूलों में लड़कियों और लड़कों के लिए एक ही शौचालय उपलब्ध थे। जिनकी हालत देखने लायक नहीं थी। लेकिन, अब इनकी स्थिति बदल चुकी है। छात्रों के लिए अलग-अलग और स्वच्छ शौचालय बनाए गए हैं।

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पिछले साल, दिल्ली के 1028 स्कूलों में 1 लाख 46 हज़ार 800 सीसीटीवी कैमरे लगाने का फैसला दिल्ली सरकार ने लिया था। यह फैसला स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रख कर लिया गया था। सरकार ने सीसीटीवी कैमरा लगाने का काम 6 महीने का टारगेट बना कर तय किया था। सरकार ने दावा किया था, कि अभिभावक घर बैठकर अपने बच्चों पर निगरानी रख सकेंगे। इसके लिए अभिभावकों को यूजर आईडी और पासवर्ड दिया जाएगा।

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एक खबर के अनुसार, दिल्ली के सरकारी स्कूलों के परिणाम पिछले 21 सालों में सबसे बेहतर देखे गए। साल 2007 से यह आंकड़ा 80 फीसदी पहुंचा है।

इसके साथ, सरकारी स्कूल से पास-आउट होने वाले छात्र-छात्राओं के लिए 25 से 100 फीसदी स्कालरशिप देने की बात कही थी। इसके साथ प्रतियोगी परीक्षा को पास करने के लिए कोचिंग में मदद करने का आश्वासन सरकार ने दिया।

अभी, दिल्ली-एनसीआर प्रदुषण की चपेट में है। इसके लिए सरकार ने सभी सरकारी स्कूलों में बच्चों को मास्क बाँटे थे। यहाँ तक कि प्रदुषण के बढ़ते खतरे को देखते हुए दिल्ली के सभी सरकारी स्कूलों को कुछ दिन के लिए बंद कर दिया था।

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वैसे, दिल्ली में हुए सुधारों को और समझा जाए तो, दिल्ली के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की स्थिति ऐसी थी, कि कक्षा-6 में एडमिशन लेने वाले बच्चे कक्षा-1 की किताबें भी सही से समझ नहीं सकते थे। इसी को देखते हुए, दिल्ली सरकार ने सबसे पहले प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा पर ज़्यादा ध्यान दिया। जिससे कि हर बच्चे की नींव मजबूत बनी रहे। इसी नींव को मजबूत करने के लिए शिक्षकों को भी मेहनत करने का काम सौंपा गया।

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हर बच्चे को सभी जरुरी किताबें और पौष्टिक भोजन सरकार की प्राथमिकता बनी। इस प्राथमिकता को पूरा करने के लिए सरकार ने बेजोड़ मेहनत की। यह तो हाल हमारी राजधानी के थे, इसके साथ देश में करोड़ों ऐसे सरकारी स्कूल हैं, जिनकी तरफ सरकार देखती तक नहीं है। हर साल बजट में से कुछ परसेंट पैसा शिक्षा पर लगा दिया तो जाता है। जिन्हें बिचौलिए ही ख़त्म कर जाते हैं।

देश के हर सरकारी स्कूल में बच्चों के लिए मिलने वाली मिड-डे मील की बात करने वाली सरकार काम करती तो है। इस काम की चर्चा कुछ ऐसी होती है, बच्चों को भोजन में मिला बासी खाना, खाने की क्वालिटी में गिरावट। इससे पहले एक खबर इसीलिए चर्चा में रही थी क्योंकि वहां वाशरूम में टॉयलेट सीट के ऊपर खाना बनाया जा रहा था। इस पर भी सरकार ने पर्दा फेर दिया।

देश में बहुत से ऐसे गरीब बच्चे हैं, जो शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। इनके कारण कई हैं। हर बच्चे को शिक्षा जरुरी मिले, का दावा करने वाली सरकार जब खुद से अपना काम ढंग से नहीं करेगी तो देश का विकास कैसा होगा। काफी सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की यही शिकायत रहती है कि उनके पास किताब नहीं हैं और अच्छे शिक्षक भी नहीं हैं। इसकी शिकायत जब स्कूल के हेडमास्टर से की जाती तो वह यही कह देते हैं कि हमने सरकार को पत्र लिख दिया है और कुछ दिनों में किताब और ड्रेस आ जायेगी। लेकिन, सच्चाई कहाँ छिपती है?