“UP से हैं, मारते मारते मोर बना देंगे” – सुरक्षित नहीं हैं महिलाओं के लिए यूपी

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महिलाओं के खिलाफ बढ़ता अपराध – घर से बाज़ार की तरफ गयी तो किसी ने पीछे से सीटी मार दी। बस में बैठी तो किसी ने हाथ पकड़ लिया। कॉलेज में गयी तो लड़कों ने गंदे इशारे कर दिए। किसी पार्टी में गयी तो नशे में किसी ने जोर-जबरदस्ती कर दी। प्यार में पागल हुए तो मजनू की तरह उसके घर के चक्कर काटने लग जाएंगे। आते-जाते उसके हर रास्ते में आवारों की तरह खड़े हो जाएंगे। दो-तीन बार बात करने की कोशिश करेंगे। बातों ही बातों में दोस्ती से आगे बढ़कर, लड़की को अपने दिल की रानी बनाने के सपने सोचने लगेंगे। अगर, लड़की ने हज़ार बार मना कर दिया तो प्लानिंग की जाती है – उसके अपहरण की, उसके साथ सामूहिक बलात्कार की, उसके ऊपर जानलेवा हमला करने की, उसके घर वालों को भी जान से खत्म करने की, उसके साथ एसिड अटैक करने की। यह हैं हमारे देश के सबसे बड़े राज्य – उत्तर प्रदेश के एक नौजवान हट्टे-कट्टे युवा लड़के की। माफ़ कीजियेगा, हो सकता है यह कहानी उलटी हो। अब एक लड़के की जगह एक लड़की को रख कर सोचिये। अब आप कहेंगे कि, क्या फालतू बात कर रही हो? लेकिन जनाब, लोग तो यह कह रहे हैं कि आजकल की लडकियां ही ऐसी हैं।

कैसी? आइए, हम बताते हैं, आजकल की शहरी लड़कियां काफी हाई-फाई हैं। उनके रहना, खाना, पीना, उठना, बैठना, चलना, फिरना, घूमना, पहनावा, सब कुछ इस समाज में नपा जाता है। लड़की घर से निकली या देर रात घर में आई नहीं, चार बातें बननी शुरू हो जाती हैं। फलाना-ढिमाका की बातें। बे-सर पैर की बातें। लेकिन क्या मॉडर्न या इंडिपेंडेंट हो जाने के बाद भी क्या एक लड़की या महिला सेफ है? सड़क की तो बात ही रहने दीजिए, यहाँ तो घर की चार दीवारी और छत के नीचे भी सुरक्षित नहीं है। यहाँ पैसों के लिए या फिर प्यार में ठुकराये जाने का तरीका यही है कि कुछ गलत कर दो। उस बात का कोई हर्ज नहीं कि वह कितना बड़ा और घिनौना जुर्म है।

हाल ही में, नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (NCRB) ने एक रिपोर्ट भेजी है। यह रिपोर्ट, देश के सभी राज्यों में खिलाफ होने वाले अपराधों की है। इस रिपोर्ट में लिखा है – देश में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में उत्तर प्रदेश सबसे ऊपर है। इस रिपोर्ट में भेजे गए आँकड़े साल 2017 से 2018 की सूची को दर्शाते हैं।

NCRB की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, साल 2016 में भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले रेप और अत्याचार जैसे अपराध सिर्फ 6% थे, जिनमें नीची जाति के लोगों के खिलाफ अपराध की गिनती 13% रही है।

NCRB की रिकार्ड्स में यह सामने आया की उत्तर प्रदेश में महिलाओं या लड़कियों की हत्या में 3.6% की गिरावट दर्ज हुई, बहरहाल, महिलाओं के खिलाफ अपहरण के मामले ज़्यादा सामने आए, जिसकी गिनती 9% आई है। भारतीय दंड संहिता के तहत, उत्तर प्रदेश में 10.1% अपराधों की गिनती हासिल की गई।

यह है महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की संख्या

https://www.wionews.com/photos/crime-and-punishment-in-india-591

लगभग 27.9% केस, महिलाओं के खिलाफ अपराध करने वाले उनके पति और उनके ससुरात पक्ष वालों के दर्ज किए गए हैं। वहीं, महिलाओं पर हमला या आक्रमण की सोच रखने वाले 21.7% मामले देश में दर्ज हैं। देश में महिलाओं के अपराधों वाले केसों की संख्या 3,59,849 है, जिसमें उत्तर प्रदेश सबसे ऊपर है। उत्तर प्रदेश में करीब 56,011 केस मिहिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराध की स्थिति आराम से दर्शाती है। ऐसे में यह तो कहना संभव है कि उत्तर प्रदेश सच में महिलाओं के लिए सुरक्षित राज्य नहीं है।

दंगे-फसाद भी हैं अपराधों की लिस्ट में शामिल

इसके साथ साल 2017 की रिपोर्ट में यह बताया गया, देश में 90 हज़ार से ऊपर में से क़रीबन 50 हज़ार दंगे फसादों के केस पर करवाई की जाती है। बाकी के दंगे-फसाद या विरोध-प्रदर्शन के मामलों को सरकार किसी फाइल में दर्ज ही नहीं करती। यदि करती भी है तो कोई उचित करवाई नहीं करती। अपराध के मामलों में साल 2016 में 3,793 पर मिलियन और साल 2017 में 3,886 पर मिलियन संख्या सामने आयी है। जिससे साफ़ पता चलता है कि साल 2016 से साल 2017 में करीबन 100 अपराध बढे हैं। देश की राजधानी में पिछले सालों के मुकाबले 8 फीसदी अपराधों को देखा गया।

अपराधों के लिए नंबर वन है उत्तर प्रदेश

देश में राज्यों को अपराधों की एक लिस्ट में दाल कर देखें तो उत्तर प्रदेश सबसे पहले क्रम पर बैठा हुआ नज़र आएगा। दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र, तीसरे नंबर पर वेस्ट बंगाल, चौथे नंबर पर मध्य प्रदेश, पांचवे नंबर पर राजस्थान और छठे नंबर पर असम आता है। दिल्ली में अपराध तो बहुत होते हैं लेकिन दामिनी बलात्कार केस के बाद से सरकार ने पुलिस प्रशासन ने इन अपराधों को दर्ज करना शुरू कर दिया था। साल 2017 में करीब 13,076 एफआईआर दर्ज की गई, साल 2016 में 15,310 और साल 2015 में 17,222 में यह संख्या रही है।

किडनेपिंग या अपहरण जैसे अपराधों की गिनती साल 2016 के मुकाबले साल 2017 में 9 फीसदी से बढ़ी है। ऐसे में, अब देश में कोई ऐसा क्षेत्र या इलाका नहीं है जहाँ महिलाएँ सुरक्षित हैं या हो सकती हैं। अब सवाल यह उठता है की महिलाओं के खिलाफ सरकार किस तरह का कानून बनाती है ? सरकार द्वारा बनाये गए कानूनों की कार्रवाई किस तरह से होती है ? जिन शिकायतों को कोर्ट में जगह मिलती है, तो उन केस को कैसे निपटाया जाता है ? न्यायालय की तरफ से क्या सज़ा मिली और कितनी मिली ? क्या पुलिस प्रशासन भी इस तरह के मामलों में सतर्क हुआ है या नहीं ?