आखिर किस भेष में सुरक्षित हैं भारत की महिलाएं

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महिला संरक्षण और सशक्तिकरण – देश की महिलाओं के बारे में जब भी कुछ ख्याल आता है तो वह सिर्फ ‘बड़ी अच्छी सूक्तियों’ में याद आता है। अब तो आप समझदार हैं। नहीं समझे अरे वही, उत्सुकता में या फिर किसी लड़ाई-झगड़े में याद किए जाने वाले वो ही दो-तीन शब्द। हाँ, वही शब्द जो अभी आपको याद आए। जिनमें हम अपनी माँ-बहनों को एक सामान मानते हैं। बिना सुने या कहे आजकल हमारा दिन कहाँ ही कटता है।

सरकार ने महिलाओं के सम्मान के लिए कई नीतियाँ तो बनाई लेकिन उनपर होता काम न जाने क्यों लोगों के सामने दिख नहीं पाता। उनके संरक्षण से लेकर सशक्तिकरण तक हर जगह सरकार ने अपना योगदान तो दिया। लेकिन इनमें आज भी कई कमियां और खामियां नज़र आती हैं। आपने भी सड़क पर बड़े-बड़े बैनर देखें होंगे, जिनमें बड़े बड़े अक्षरों से साफ़ लिखा है ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’

ख़ास मौकों पर ही होती है महिलाओं की चिंता

महिला सशक्तिकरण के बारे में बात होती है ‘अंतराष्ट्रीय महिला दिवस’ के दिन, जोकि आठ मार्च को पूरे विश्व में मनाया जाता है। विश्व भर की उन महिलाओं के बारे में बात की जाती हैं जो खुद में एक जीती जागती मिसाल हैं। उनके काम के चर्चे किए जाते हैं। अगर इस महिला सशक्तिकरण के शब्द को समझें तो अर्थ यही होगा कि महिलाओं को ज़िन्दगी पूरी स्वतंत्रता से जीने का हक़ और अपने सपनों को पूरा करने की क्षमता रख सकें। महिला सशक्तिकरण वह शब्द है जो साफ़ तरीके से समझा सके कि महिला एक शक्ति का रूप है।

अक्सर यह शब्द वहाँ इस्तेमाल किया जाता है जब किसी बैठक में महिलाओं के काम की बात हो। हमारे देश में महिलाओं के काम को घर का काम कह दिया जाता है। आज भी लड़कियों को घर के काम के लिए यह कह दिया जाता है कि अगर यह काम अच्छे से नहीं सीखा तो दूसरे घर जाकर क्या करोगी।

अक्सर यह शब्द वहाँ इस्तेमाल किया जाता है जब किसी बैठक में महिलाओं के काम की बात हो। हमारे देश में महिलाओं के काम को घर का काम कह दिया जाता है। आज भी लड़कियों को घर के काम के लिए यह कह दिया जाता है कि अगर यह काम अच्छे से नहीं सीखा तो दूसरे घर जाकर क्या करोगी। और आज की युवा पीढ़ी की सोच यह बनी रहती है कि इतना पढ़-लिखने के बाद कौन इन कामों को करेगा। अपने रोज़मर्रा के खर्चों ‘में एक बाई’ का नाम जोड़ दिया जाता है। और यह बात वाद-विवाद में बदल जाती है, और अंत में लोग यह कह देते हैं कि बच्चे(लड़कियां) हाथ से निकल गयीं। अब क्या ही कहें। क्या इस सोच में कमी है या फिर वक़्त के साथ न बदलने वाली खामियां।

अब बात करते हैं महिला के संरक्षण की, उनकी सुरक्षा की। ख़बरों की और आज की स्थितियों की मानें तो महिलाएं कभी भी सुरक्षित नहीं हैं।

अब तो घर में भी सुरक्षा नहीं हैं महिलाओं की

अब बात करते हैं महिला के संरक्षण की, उनकी सुरक्षा की। ख़बरों की और आज की स्थितियों की मानें तो महिलाएं कभी भी सुरक्षित नहीं हैं। चाहे वह घर के अंदर हो या घर के बाहर। भले ही वह ऑफिस हो या स्कूल। कोई बंद मेहफ़ूज़ कमरा हो कोई भीड़-भाड़ वाला गली-मोहल्ला। घर में महिलाओं को बचाने के लिए सरकार ने घरेलु हिंसा अधिनियम का कानून बनाया है। 2005 में घरेलु हिंसा महिलाओं का संरक्षण अधिनियम पारित किया गया। इसमें कई तरह के अधिकार महिलाओं के लिए बनाये गए। यदि कोई महिला घरेलु हिंसा का शिकार है तो वह इसकी शिकायत कोर्ट में कर सकती है। कोर्ट में केस दाखिल करने के आड़ अगर संभव हो सका तो कोर्ट महिला को रहने के लिए घर, खाने-पीने व बाकी खर्चों के लिए पैसे, दिलवा सकती है। लेकिन क्या इन अधिकारों का इस्तेमाल सही जगह और सही समय किया जा रहा है। वकीलों की मानें तो वह यह कहते हैं कि आज की महिलाएं या लडकियां ज़रा-ज़रा सी बात पर लड़ लेती है। और लड़ाई इतनी बढ़ती है कि घर छोड़ने व तलाक वाली नौबत भी आजाती है। चलिए ठीक है, यह बात आपकी मान ली। लेकिन जो लड़कियों के साथ यह सच में घटना घट रही है उनका क्या।

यह #MeToo मूवमेंट शुरू हुआ था बॉलीवुड में। यह मूवमेंट एक जगह से शुरू हो कर पुरे देश में किसी वायरस की तरह फ़ैल गया। सोशल मीडिया पर तो मानों बाढ़ सी आ गई हो। हर कोई इस मूवमेंट से जुड़े सभी अपराधों के बारे में बताने लगा।

ऑफिस के लिए बनाया गया है #MeToo, इसका इस्तेमाल किया जाता है तब जब कोई आपको ऑफिस में परेशान करे। यह #MeToo मूवमेंट शुरू हुआ था बॉलीवुड में। यह मूवमेंट एक जगह से शुरू हो कर पुरे देश में किसी वायरस की तरह फ़ैल गया। सोशल मीडिया पर तो मानों बाढ़ सी आ गई हो। हर कोई इस मूवमेंट से जुड़े सभी अपराधों के बारे में बताने लगा। फिर क्या था कोई भी वायरल हो तो खबर का रूप ले लेती है। ठीक ऐसा ही हुआ। साल 2013 को देश में ‘सेक्सुअल हरस्मेंट ऑफ वोमेन इन वर्कप्लेस’ का कानून बनाया गया। इस कानून का काम था देश में सभी कर्मचारियों (पुरुष या महिला) को सभी तरह के लाभ और सुरक्षा प्रदान देता है। इसके साथ और भी कई कानून बनाये गए थे।

वैसे कुछ दिनों पहले POCSO एक्ट का अधिनियम किया गया। इसके अधिनियम के लिए केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने राज सभा में आवाज़ उठाई थी। इस एक्ट के तहत बच्चों के साथ होने वाली गलत व आपत्तिजनक हरकतों को बंद करना।

अब महिलाओं के साथ गलत हरकतों वाली खबरें तो आप सुनते ही होंगे, जैसे रेप ही ले लीजिये। यह महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों की पहली गिनती में आता है। जो कि अब आम बात हो चुकी है। आधे से ज़्यादा अखबारों के पन्ने इन्हीं ख़बरों से ही तो सजाए जाते हैं। और इन अपराधों के लिए महिलाओं की कोई उम्र भी नहीं देखी जाती है। न ही कोई जाति और न ही कोई धर्म। वैसे कुछ दिनों पहले POCSO एक्ट का अधिनियम किया गया। इसके अधिनियम के लिए केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने राज सभा में आवाज़ उठाई थी। इस एक्ट के तहत बच्चों के साथ होने वाली गलत व आपत्तिजनक हरकतों को बंद करना। और उन आरोपियों खिलाफ उचित करवाई भी की जायेगी। असल में बच्चों के साथ हो रहे इस अपराध की गिनती बढ़े ही जा रही थी। यहाँ तक की बच्चों की मौत भी हो जाती थी। और लोगों में इस बात की आहत भी थी।

अब इन चीज़ों को देखकर तो यही लगता है कि सतयुग के समय में महिलाएं ज़्यादा सुरक्षित थीं। द्रौपदी को बचाने के लिए भगवान कृष्ण थे और अपहरण करने के बाद भी माँ सीता को न छूने वाला रावण भी था। लेकिन आज के समय में चीख़-चिल्ला कर खुद को बचा पाना भी संभव नहीं है। क्योंकि यहाँ भीड़ बनकर तमाशा देखने वाले हज़ारों हैं लेकिन उन पुरुषों के बीच में कोई ‘मैन’ नहीं। अब ऐसे में इन ‘वोमनिया’ को अपना रूप जल्द से जल्द दिखाना होगा। अब सीधी-साधी महिला नहीं बल्कि झाँसी की रानी या बैंडिट क्वीन बनना होगा। आपने अमिताभ बच्चन के फेमस डॉयलोग को तो सुना होगा कि ‘मर्द को दर्द नहीं होता’, लेकिन उस मर्द को दर्द जरूर होता है जिसकी बहन-बेटियों के साथ ऐसा हो।

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