‘सबका साथ, सबका विकास’ और अब ‘सबका विश्वास’, कैसे करेगी सरकार इस देश का उज्जवल विकास

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सरकार इस देश का उज्जवल विकास

सरकार इस देश का उज्जवल विकास: सरकार व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश के युवाओं पर बड़ा गर्व है। तभी तो साल 2014 में अपनी सरकार बनाने के लिए उन्होंने घोषणापत्र में यह बात रखी थी कि युवाओं को बढ़िया नौकरी मिलेगी। इसके लिए उन्होंने एक नारा भी दिया था ‘सबका साथ, सबका विकास’। यही नहीं इस नारे का सीधा जोड़ है व्यापार और किसानों के लिए।

साल 2014 के चुनावों के लिए घोषणापत्र तैयार किया गया। कई बड़े-बड़े अहम वादों को किसी पर्चे में जगह मिल गयी। इसी बीच भारतीय जनता पार्टी ने भी कई बड़े वादे किए। उस समय लोग बदलाव के इंतज़ार में बैठे थे। क्योंकि कांग्रेस पार्टी के काम से शायद लोग खुश नहीं थे। इसीलिए वह यह उम्मीद लगाए बैठे थे कि अब उनके कुछ सपने पुरे होंगे।

सरकार इस देश का उज्जवल विकास: मोदी को सत्ता में आए हुए पांच साल हो चुके हैं। इस पांच साल के कार्यकाल में उन्होंने कई प्रोग्राम शुरू करे। उस समय मोदी सरकार का सबसे सटीक नारा रहा – ‘सबका साथ, सबका विकास’ .और लोगों के मन में यह उम्मीद जग चुकी थी कि विकास जरूर होगा। लेकिन क्या विकास हुआ है? आइए जानते हैं –

‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा देते हुए मोदी सरकार ने यह आश्वासन दिया था कि साल 2022 तक किसान की आय दोगुनी हो जायेगी। साल 2019 आ गया है लेकिन अभी तक किसानों का आंदोलन होता रहता है। कभी दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना प्रदर्शन या फिर कहीं कोई किसानों की रैली का निकलना। यह सब किसानों का गुस्सा ही है जो अक्सर किसी न्यूज़ चैनल में या फिर किसी अखबार में दिख जाता है।

अगर हम इसके दावों को देखें, तो कहा तो कुछ और था, रिजल्ट निकला कुछ और। इसके आँकड़े देखें तो आज के समय में देश के 47% लोग किसानी करते हैं। पर मोदी सरकार के बाद पिछले तीन वर्षों में किसानी का जीडीपी का विकास दर 1.7% रहा। वहीं, यूपीए की सरकार के दूसरे कार्यकाल के आखिरी तीन साल के 3.6% के आधे भी काम रहा है। इसका कारण रहा था देश में सूखा पड़ना। इसके लिए प्रधानमंत्री को दोष देना तो नहीं चाहिए।

इसके साथ कृषि क्षेत्र में भी दो नीतियां बनाई गईं। एक थी फसल बीमा प्रीमियम और एक था फसली ऋण माफ़ करने का निर्देश। जो कि आगे भी नहीं बढ़ सका था। असल में, इन दोनों नीतियों का फायदा सिर्फ वही किसान उठा सकते थे जीने पास खुद की ज़मीन हो। अगर देखा जाए तो यह दोनों नीतियां कृषि मज़दूरों को नज़रअंदाज़ करने का काम कर रही हैं। अपनी रोज़ी रोटी को कमाने के लिए सबसे पहले कृषि मज़दूर ही गरीब हो जाते हैं।

हाल ही में, एक हिंदी अखबार में एक खबर छपी थी। इसमें लिखा गया था कि मुख्यमंत्री फसली ऋण मोचन योजना पूरी हुई। इस योजना में उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में कई किसानों का लोन माफ़ किया गया। इस योजना में 579 करोड़ रुपए माफ़ किए गए थे। अगर किसानों की संख्या देखें तो यह करीबन 94 हज़ार से ज़्यादा ही रही है। कहा जा रहा है काफी किसानों को कर्ज से निपटने के लिए मदद दी गई है।

वहीँ देश में काफी ऐसे किसान आज भी मौत को अपना अंतिम सहारा बना लेते हैं। कोई कर्ज की वजह से या फिर कोई बारिश न होने के कारण। मान लिया कि बारिश को हम अपने हाथों में नहीं ले सकते। यह तो प्रकृति का नियम है। देश का कोई ऐसा राज्य या जिला नहीं होगा जिसमें किसानों ने आत्महत्या करना ही एक मात्र सहारा बनाया हो। चुनाव के समय में याद आने वाले चुनिंदा वर्ग, केवल राजनीति की ही रणनीति है।

आज के समय में जॉब है या नहीं, यह तो एक मुद्दा है ही। इसके साथ एक और अहम मुद्दा है, वह है – जॉब सिक्योरिटी। एक शौध में सामने आया कि भारतीय युवा जॉब में सैलरी से ज़्यादा जॉब की सिक्योरिटी पर ज़्यादा ध्यान देते हैं। भारतीय युवाओं के मन में बैंकिंग और गवर्नमेंट जॉब के लिए एक अलग जगह बनी हुई है। देश में बढ़ती जनसँख्या और टेक्नोलॉजी के बढ़ रही स्तर ही बेरोज़गारी का कारण है।

भारत में कुल नौकरियाँ 20 से 22 करोड़ हैं। अब प्रश्न यह है कि नौकरियाँ तो बहुत हैं लेकिन इसका उत्तर यह है कि बढ़ती जनसँख्या और नौकरियों में छंटनी के कारण इतनी नौकरी नहीं दी जा सकती। हमारे देश में मुश्किल से, 1.5 से 2 प्रतिशत युवा वर्ग को ही नौकरी उपहार में दी जाती है। ऐसे में बाकी 98% युवा वर्ग इतनी महंगी डिग्री लेकर कहाँ जाएंगे?

भारत में कुल नौकरियाँ 20 से 22 करोड़ हैं। अब प्रश्न यह है कि नौकरियाँ तो बहुत हैं लेकिन इसका उत्तर यह है कि बढ़ती जनसँख्या और नौकरियों में छंटनी के कारण इतनी नौकरी नहीं दी जा सकती। हमारे देश में मुश्किल से, 1.5 से 2 प्रतिशत युवा वर्ग को ही नौकरी उपहार में दी जाती है। ऐसे में बाकी 98% युवा वर्ग इतनी महंगी डिग्री लेकर कहाँ जाएंगे?

सरकारी नौकरी के लिए अच्छे से अच्छे कोचिंग सेंटर में जाना। मोटी-मोटी किताबें घोल कर पी जाना। अब यही उम्मीद रह गयी है देश के युवा की। किसानों का कर्ज माफ़ लेकिन देश के कुछ ही हिस्सों में। क़र्ज़ माफ़ी के लिए भी सरकार सौ तर्क रख देती है। किसानों की मौत पर परिवार को कुछ पैसे दे दिए जाते हैं, उनकी सुरक्षा और लालन-पालन के लिए। कभी-कभी सरकार किसानों के बच्चों के लिए फ्री शिक्षा, अच्छी नौकरी और बढ़िया घर या शादी के लिए भी कुछ उचित राशि भी दे देती है। आम आदमी को सुविधा देने वाली सरकार भी क्या ही करेगी।